कई पहले भी हार चुके; 6 ऐसे चेहरे जो पहली बार करेंगे टिकट की दावेदारी
पहली बार करेंगे टिकट की दावेदारी
कई प्रोफेसर, IAS-IPS, छात्र नेताओं को सियासत में उतारने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बार भी कई करीबी लोगों को चुनावी मैदान में उतार सकते हैं। इनमें कोई पूर्व ब्यूरोक्रेट है, कोई बिजनेसमैन तो कोई उनके इर्द-गिर्द रहने वाला सबसे भरोसेमंद। खास बात ये है कि मौजूदा समय में कोई भी विधायक, सांसद या मंत्री नहीं हैं, लेकिन बोर्ड-आयोगों में प्रभावशाली पदों पर हैं।
ऐसे 9 लोग हैं जो पिछले 20 से 30 साल से सीएम गहलोत से जुड़े हुए हैं। कई मौकों पर CM ने इन्हें बोर्ड-आयोगों में नियुक्ति भी दी, लेकिन अब ये सियासत की मुख्यधारा में आने की तैयारी कर रहे हैं। ये सभी लंबे समय से विधानसभा क्षेत्रों में एक्टिव हैं और टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।
हाल ही में राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड के अध्यक्ष पद से पूर्व आईपीएस हरिप्रसाद शर्मा ने इसलिए इस्तीफा दिया] क्योंकि चुनाव में कम ही समय बचा है। वे कांग्रेस से टिकट की दावेदारी जताने के लिए फील्ड में तैयारी करना चाहते हैं। उनकी तरह ही कुल 8 लोग और हैं। इनमें से 3 लोग तो पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं। लेकिन 6 चेहरे विधानसभा चुनाव में पहली बार किस्मत आजमाएंगे।
मंडे स्पेशल स्टोरी में पढ़िए कौन हैं वे चेहरे और कहां से कर रहे हैं दावेदारी...
1. लोकेश कुमार शर्मा, मुख्यमंत्री के सलाहकार
कभी सामाजिक कार्यकर्ता रहे लोकेश कुमार शर्मा साल 2010-11 में मुख्यमंत्री का सोशल मीडिया अकाउंट हैंडल करते थे, लेकिन थोड़े ही समय में मुख्यमंत्री के नजदीकी लोगों में शामिल हो गए। जब गहलोत सीएम नहीं थे, तब भी लोकेश उनके साथ रहे और प्रेस से जुड़ा काम देखने लगे। 2018 में जब कांग्रेस सत्ता में आई तो CM गहलोत ने उन्हें विशेषाधिकारी बनाया।
लोकेश कुमार शर्मा CM गहलोत के ओएसडी हैं और वे मीडिया का काम देखते हैं।
लोकेश कुमार शर्मा CM गहलोत के ओएसडी हैं और वे मीडिया का काम देखते हैं।
शर्मा पिछले कई साल से बीकानेर पश्चिम सीट पर सक्रिय देखे गए हैं। उन्होंने मीडिया में वहां से चुनाव लड़ने के बारे में बयान भी दिए हैं। बीकानेर पश्चिम सीट से वर्तमान में शिक्षा मंत्री डॉ. बीडी कल्ला विधायक हैं।
कल्ला एक बार कह भी चुके कि लोकेश को चुनाव लड़ना है तो सीएमओ की नौकरी छोड़कर मैदान में आए, इस पर लोकेश ने जवाब दिया था कि वे विशुद्ध राजनीतिक आदमी हैं, किसी नौकरी में नहीं हैं। बीकानेर पश्चिम से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। भास्कर से बातचीत में उन्होंने कहा- मैं बीकानेर पश्चिम सीट से चुनाव लड़ने का प्रयास कर रहा हूं। बीकानेर के लोगों ने मुझे बेशुमार स्नेह दिया है।
2. हरिप्रसाद शर्मा, राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड अध्यक्ष
शर्मा पूर्व आईपीएस अफसर हैं। सीएम गहलोत जब भी सीएम रहे शर्मा को हमेशा बेहतरीन फील्ड पोस्टिंग मिली। बीकानेर, अजमेर, नागौर, उदयपुर, झुंझुनूं, जयपुर ग्रामीण और श्रीगंगानगर जिलों में एसपी रहे। इतने जिलों में आम तौर पर बहुत कम अफसर ही एसपी रहे हैं। शर्मा को बोल्ड और महीन सूझबूझ वाला अफसर माना जाता है।
राजस्थान अधीनस्थ और मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड के चेयरमैन हरिप्रसाद शर्मा हाल ही में अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं।
राजस्थान अधीनस्थ और मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड के चेयरमैन हरिप्रसाद शर्मा हाल ही में अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं।
रिटायरमेंट के बाद साल 2018 में उन्होंने फुलेरा से विधायक का चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली थी, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला था। बाद में कांग्रेस की सरकार बनने पर उन्हें कर्मचारी चयन बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। हाल ही में उन्होंने अपना कार्यकाल समाप्त होने से बहुत पहले ही पोस्ट से इस्तीफा दे दिया है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि वे फुलेरा सीट से कांग्रेस का टिकट मांगेंगे, उन्होंने चुनावी तैयारी शुरू कर दी है।
3. निरंजन आर्य, मुख्य सचिव से मुख्यमंत्री के सलाहकार
प्रदेश के मुख्य सचिव रहे निरंजन आर्य को मुख्यमंत्री के करीबी ब्यूरोक्रेट में गिना जाता है। आर्य सीएम गहलोत के प्रमुख शासन सचिव (सीएमओ) भी रहे हैं। सीएम गहलोत ने उन्हें साल 2020 में करीब 10 सीनियर आईएएस की सीनियरिटी को लांघकर राज्य की सबसे ऊंची कुर्सी सौंपी और मुख्य सचिव बनाया।
सीएम गहलोत के साथ पूर्व मुख्य सचिव निरंजन आर्य। आर्य सोजत (पाली) से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
सीएम गहलोत के साथ पूर्व मुख्य सचिव निरंजन आर्य। आर्य सोजत (पाली) से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
इससे पहले उनकी पत्नी संगीता आर्य को कांग्रेस ने 2008 में सोजत (पाली) से विधायक का चुनाव लड़वाया था, हालांकि वे हार गईं थीं। इसके बाद संगीता आर्य को 2020 में आरपीएससी में सदस्य बनाया गया। वहीं निरंजन आर्य के रिटायर होने के बाद उन्हें गहलोत ने अपना सलाहकार बना दिया। अब निरंजन आर्य खुद राजनीतिक पारी की शुरुआत करना चाहते हैं। सोजत (पाली) से आर्य को विधानसभा चुनाव में उतारा जा सकता है।
4. रेहाना रियाज चिश्ती : चूरू सीट पर बन सकती हैं महिला चेहरा
मूल रूप से चूरू की रहने वाली रेहाना को सीएम गहलोत ने राजस्थान महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया हुआ है। रेहाना को चूरू से विधानसभा का टिकट दिया जा सकता है। चूरू से पिछले तीन चुनावों 2008, 2013 और 2018 में कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवारों को ही टिकट दिया है, लेकिन जीत केवल 2008 में मकबूल मंडेलिया को मिली।
2013 और 2018 में वहां से कांग्रेस लगातार दो बार चुनाव हार चुकी है। इससे पहले कांग्रेस यहां 1990, 1993, 1998 और 2003 के चुनाव में भी लगातार हार चुकी है। ऐसे में वहां अब रेहाना रियाज को महिला और मुस्लिम चेहरे के नाम पर उतारा जा सकता है।
5. पवन गोदारा, छात्र राजनीति से बनाई नजदीकियां
गोदारा वर्तमान में अन्य पिछड़ा आर्थिक वर्ग बोर्ड के चेयरमैन हैं। वे सीएम गहलोत के पिछले कार्यकाल में युवा बोर्ड के चेयरमैन रहे थे। कांग्रेस के छात्र संगठन व यूथ कांग्रेस से लंबे अरसे से जुड़े रहे हैं। गोदारा फिलहाल हनुमानगढ़ से टिकट पाने के लिए प्रयासरत हैं। सीएम गहलोत से गोदारा का जुड़ाव करीब ढाई दशक से है।
छात्र संगठन से ही गहलोत का राजनीतिक करियर शुरू हुआ था। ऐसे में गहलोत ने जयपुर, जोधपुर, अजमेर, बीकानेर, उदयपुर, कोटा आदि के विश्वविद्यालयों से जुड़े कई छात्र नेताओं और संगठन पदाधिकारियों को आगे बढ़ाया है। गोदारा भी इसी तरह से उनके संपर्क में आए थे।
6. राजीव अरोड़ा : तीन-तीन बार मंत्री का दर्जा प्राप्त
अरोड़ा वर्तमान में राजस्थान राज्य लघु उद्योग निगम के चेयरमैन हैं। वे अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें तीनों बार मुख्यमंत्री बनने पर अशोक गहलोत ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर किसी न किसी तरह के बोर्ड-निगम में चेयरमैन बनाया है। अरोड़ा को अब तक आरटीडीसी (1998-2003), राजस्थान फाउंडेशन (2008-2013) और लघु उद्योग निगम (2018-2023) का चेयरमैन बनाया जा चुका है।
राजीव अरोड़ा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई उद्योग-व्यापार जगत के संगठनों से जुडे हुए हैं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में नैरोबी (केन्या) में शिरकत के दौरान की उनकी तस्वीर।
राजीव अरोड़ा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई उद्योग-व्यापार जगत के संगठनों से जुडे हुए हैं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में नैरोबी (केन्या) में शिरकत के दौरान की उनकी तस्वीर।
अरोड़ा के लिए राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि वे गहलोत के निजी मित्र की हैसियत से राजनीति में हैं। कहा जाता है कि 30-35 साल पहले तक गहलोत उनके साथ स्कूटर पर घूमा करते थे। यही कारण है कि अरोड़ा को तीन-तीन बार बड़े पद सौंपे गए।
अरोड़ा को एक बार साल 2008 में मालवीय नगर, जयपुर से विधायक का टिकट भी दिया गया था, लेकिन वे चुनाव हार गए थे। अब एक बार फिर से वे मालवीय नगर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
7. अक्षय त्रिपाठी, पत्रकारिता से पॉलिटिक्स में उतरे
त्रिपाठी कभी पत्रकार थे और हाल ही में उन्हें भीलवाड़ा में जिलाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। जब गहलोत पहली बार सीएम (1998-2003) बने थे, तब उन्होंने त्रिपाठी को भीलवाड़ा यूआईटी का चेयरमैन बनाया था। तब से त्रिपाठी कांग्रेस की राजनीति में एक्टिव हैं। अब त्रिपाठी इसी जिले की सहाड़ा या भीलवाड़ा सिटी सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। दोनों सीटों पर पिछले दो दशक में ब्राह्मण विधायकों का दबदबा रहा है।
8. संजय बाफना : तीन दशक से भी पुराने साथी
बाफना सीएम गहलोत के साथ पिछले तीन दशक से हैं। गहलोत जब केंद्रीय मंत्री बने थे, उससे पहले भी दोनों में मित्रता थी। पेशे से बिजनेसमैन बाफना को साल 2013 में सांगानेर से टिकट दिया गया था, लेकिन वे चुनाव हार गए थे। अब वे जयपुर के मालवीय नगर विधानसभा क्षेत्र से टिकट पर दावेदारी जता रहे हैं।
9. धर्मेंद्र राठौड़ : कभी थे कर्मचारी नेता, अब लाल डायरी से चर्चा में
प्रदेश की राजनीति में इन दिनों जिस लाल डायरी को लेकर घमासान मचा हुआ है, वो लाल डायरी धर्मेंद्र राठौड़ की बताई जाती है। राठौड़ वर्तमान में राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) के चेयरमैन हैं। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है, लेकिन प्रदेश के राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक हलकों में वे मंत्रियों से भी ज्यादा ताकतवर माने जाते हैं।
वे पिछले 2 साल से पुष्कर और अजमेर (उत्तर) सीटों पर सक्रिय हैं। वे वहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं। राजनीतिक हलकों में उनका टिकट पक्का माना जा रहा है।
धर्मेंद्र राठौड़ का हाल ही में पैर फ्रैक्चर हो गया है।
धर्मेंद्र राठौड़ का हाल ही में पैर फ्रैक्चर हो गया है।
गहलोत ने कभी सरकारी कर्मचारियों के नेता उदय सिंह राठौड़ को 1998 में बनीपार्क (जयपुर) से टिकट दिया था। राठौड़ वो चुनाव तो जीते, लेकिन 2003 में हार गए। इसके बाद से धर्मेंद्र राठौड़ बतौर कर्मचारी नेता गहलोत के नजदीक आए। पिछले कार्यकाल (2008-2013) में गहलोत ने उन्हें राजस्थान बीज निगम का अध्यक्ष भी बनाया था।
इन दिग्गजों को चुनावी मैदान में उतारने वाले भी अशोक गहलोत
राजस्थान की राजनीति में डॉ. सीपी जोशी, डॉ. बीडी कल्ला, डॉ. महेश जोशी, डॉ. रघु शर्मा और महेंद्र चौधरी के नाम दिग्गज राजनेताओं के रूप में गिने जाते हैं। इनमें से चौधरी के अलावा सभी सीएम गहलोत के संपर्क में 1980-85 से हैं। चौधरी 1998 से गहलोत के संपर्क में हैं। गहलोत ही इन्हें राजनीति में लेकर आए थे। डॉ. सीपी जोशी उदयपुर और डॉ. कल्ला बीकानेर में कॉलेज में प्रोफेसर थे।
वहीं महेश जोशी, रघु शर्मा और महेंद्र चौधरी राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हैं। सीपी जोशी तो केंद्र में रेल मंत्री रहे हैं और वर्तमान में विधानसभा के अध्यक्ष भी हैं। इनके अलावा पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चंद्रभान, राजस्व मंत्री रामलाल जाट, महिला व बाल विकास मंत्री ममता भूपेश सहित वर्तमान में विधायक बाबूलाल नागर, गोपाल मीणा, गंगादेवी वर्मा, अमीन कागजी और रफीक खान भी गहलोत की ही खोज रहे हैं।
अशोक गहलोत अपने राजनीतिक करियर में कई युवाओं को चुनाव में उतार चुके हैं।
अशोक गहलोत अपने राजनीतिक करियर में कई युवाओं को चुनाव में उतार चुके हैं।
कई को दिया था सांसद का टिकट, केंद्रीय मंत्री तक बने
पिछले दो दशक में सीपी जोशी, गोपाल सिंह ईडवा, डॉ. कर्ण सिंह यादव, इज्यराज सिंह, बद्रीराम जाखड़, लालचंद कटारिया, नमोनारायण मीणा को सांसद का टिकट भी दिया गया। यह सब भी गहलोत के मित्र बनकर ही कांग्रेस में आए थे। यह सब क्रमश: भीलवाड़ा, राजसमंद, अलवर, कोटा, पाली, जयपुर ग्रामीण, टोंक-सवाईमाधोपुर से सांसद बनें। इनमें से रिटायर्ड आईपीएस नमोनारायण मीणा, डॉ. सीपी जोशी और लालचंद कटारिया तो केंद्र में (2009-2014) यूपीए सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
गहलोत, कांग्रेस के भीतर कांग्रेस के लिए अपनी एक खास टीम बनाने वाले नेता
पिछले चार दशक से गहलोत की राजनीतिक जीवन शैली को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सूचना आयुक्त नारायण बारेठ बताते हैं कि गहलोत जब भी किसी पद पर रहे, कांग्रेस के लिए कांग्रेस के भीतर अपनी एक अलग टीम बनाते रहे हैं।
वे हमेशा एससी-एसटी, ओबीसी की उन जाति-वर्ग पर ध्यान देते थे, जिनकी संख्या बहुत बड़ी है, लेकिन राजनीतिक तौर पर पिछड़े हुए हैं। सरकारी अफसर, वकील, प्रोफेसर, पत्रकार आदि पेशेवरों को भी उन्होंने अपने साथ जोड़ा। यही कारण है कि उन में से कई लोग बाद में विधायक, सांसद, मंत्री बने। अब कुछ नए लोगों को भी गहलोत 2023 के चुनावों में आगे ला सकते हैं।
ये गहलोत की शैली, मित्र बनाते हैं और फिर पार्टी से जोड़ते हैं
राजस्थान यूनिवर्सिटी के अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रोफेसर विनोद कुमार शर्मा का कहना है कि गहलोत की राजनीतिक शैली यही रही है। कांग्रेस का काडर तो अपनी जगह है, लेकिन गहलोत पहले मित्र बनाते हैं फिर उन्हें कांग्रेस से जोड़ते हैं। यही कारण है कि उन्होंने प्रदेश की लगभग सभी 200 विधानसभा सीटों के क्षेत्रों में 100-200 निजी मित्र बनाए हैं। वे सभी आज कांग्रेस के लिए काम करते हैं। कोई किसी पद पर है, तो कोई विधायक-सांसद भी हैं। इस तरह के काडर वाला गहलोत के अतिरिक्त कोई और राजनेता प्रदेश में नहीं है।
मेरी तरह सैकड़ों युवा चुनावी मैदान में उतरने को तैयार : लोकेश कुमार शर्मा
सीएम गहलोत के विशेषाधिकारी (पीआर) लोकेश कुमार शर्मा ने बताया कि उन्होंने प्रदेश की लगभग 110 सीटों पर युवा संवाद कार्यक्रम भी किया है। इसी तरह गहलोत से जुड़े अन्य लोग भी विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से टिकट पाकर चुनाव लड़ने का प्रयास कर रहे हैं। प्रदेश की कई सीटों पर अब युवाओं को आगे लाने की बात कांग्रेस के भीतर होने लगी है।