जयपुर: राजस्थान में किसानों को इस बार गेहूं की कीमत बढ़ने का बेसब्री से क्यों हैं इंतज़ार, जानिए
जयपुर: राजस्थान में किसानों की मंडी में गेहूं बेचने में कम दिलचस्पी है। इसका कारण रूस-यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है। राजस्थान में इस बार गेहूं की फसल कटाई के बाद उपज का मंडियों में बेसब्री से इंतजार हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय हालात को वजह मानकर ये भी अंदेशा जताया जा रहा हैं कि जल्द थाली के बजट में भारी इजाफा हो सकता है। जयपुर के आस-पास की मंडियों में आमतौर पर अप्रैल की शुरुआत में नए गेहूं की फसल बेचने के लिए पहुंच जाती है, पर इस बार ऐसा नहीं हो सका है। किसान या तो फसल सीधे उपभोक्ता तक लेकर जा रहे हैं या फिर स्टोरेज में रखकर कीमतों में इजाफे का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में माल की आवक नहीं होने से 40 से 50 रूपए प्रति क्विंटल का इजाफा अभी से ही देखने को मिल रहा है। जयपुर जिले की चौमूं अनाज मंडी में आम तौर पर अप्रैल की शुरुआत के साथ भारी संख्या में गेहूं बेचने के लिए काश्तकार पहुंच जाते थे, पर इस बार ऐसा नहीं हो सका है। किसान रोजाना केवल दो सौ से लेकर तीन सौ कट्टे तक यहां बेचने के लिए आ रहे हैं। खेड़ली और खैरथल की मंडियों में भी रोजाना हजारों क्विंटल का कारोबार फिलहाल नाम मात्र का हो रहा है। नवीन मंडी व्यापार उद्योग मंडल के अध्यक्ष नवीन जिंदल बताते हैं कि किसान फिलहाल दो देशों के बीच युद्ध के बाद महंगाई के बढ़ते हालात के बाद सतर्क हो गए हैं। उन्हें उम्मीद है कि जल्द गेहूं के दामों में भी भारी इजाफा होगा। लिहाजा वे फिलहाल मंडी का रुख नहीं कर रहे हैं।
किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट के मुताबिक एक तरफ मंडियों में फिलहाल गेहूं के नहीं आने का कारण रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई को माना जा सकता है, तो दूसरी तरफ किसान भी जागरूक होकर सीधे अपना माल अब उपभोक्ता को बेचने के लिए तैयार हो चुके हैं। लिहाजा माल मंडियों तक नहीं पहुंच पा रहा है। जाट बताते हैं कि इस बार सरकार ने भी गेहूं का समर्थन मूल्य अच्छा दिया है, लेकिन किसान को लगता है कि अगर एक महीने और माल रोक लिया जाए, तो उन्हें इस बार की उपज पर बेहतर मुनाफा हासिल हो सकता है।
इस बार केंद्र सरकार रबी मार्केटिंग के मौजूदा सीजन में 444 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद सकती है, क्योंकि साल 2021-22 में 336.48 लाख हेक्टेयर में गेहूं को बोया गया है। प्रदेश में भी करीब 106 लाख मीट्रिक टन गेहूं का उत्पादन हुआ है। जिस तरह से बीते छह महीने में खाद्य तेल और ईंधन की कीमतों में बढोतरी हुई है, उसके बाद किसानों के इरादे में भी बदलाव देखने को मिला है। फिलहाल सरकार 1975 प्रति क्विंटल की दर से गेहूं को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद रही है, जो साल 2020-21 के मुकाबले पचास रुपए ज्यादा है। फिर भी किसान उम्मीद कर रहा है कि उन्हें थोड़े इंतजार के बाद 2400 रूपए प्रति क्विंटल की दर तक गेहूं की कीमत मिल सकती है। ऐसे में इस इंतजार को देखते हुए जल्द ही थाली में भी रोटी के जायके पर महंगाई का जोर देखने को मिल सकता है।