पर्यावरण की अनदेखीः जयपुर कलेक्टर ने कटवाए पेड़,

Update: 2023-07-28 06:24 GMT

जयपुर: डैडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर कॉरपोरेशन लिमिटेड (DFCCIL) को जयपुर जिला कलेक्टर ने सैंकड़ों हरे पेड़ों को काटने की परमिशन तो दे दी। लेकिन, उनकी जगह कितने नए पेड़ लगाए गए इसका कोई पता (रिकॉर्ड) ही नहीं है। यहां तक कि जिन तहसीलदार और एसडीएम को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे पेड़ों को चिन्हित करके कटवाएं और उनकी जगह चार गुना नए पेड़ लगवाना सुनिश्चित करें, उनके पास भी इसका कोई हिसाब नहीं है। पर्यावरण के प्रति ऐसी घोर लापरवाही को राज्य सूचना आयोग ने गंभीरता से लिया है।

मुख्य सूचना आयुक्त डीबी गुप्ता ने एक आरटीआई अपील का निर्णय करते हुए मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व विभाग और जयपुर कलेक्टर से पूरे मामले में पेड़ों संबंधी नियमों और निर्देशों का सख्ती से पालन करवाने को कहा है।

गुप्ता ने अपील के फैसले में कहा है कि यह तो मात्र कुछ प्रोजेक्ट अथवा क्षेत्रों से संबंधित घटना है। लेकिन, डैडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर की लाइन बहुत लंबे क्षेत्र से निकल रही है। अन्य परियोजनाओं में भी समय-समय पर पेड़ों काटे जाते हैं। इसलिए जिम्मेदारी का निर्वहन न करने वाले लोेगों पर कार्यवाही सुनिश्चित की जाए।

गुप्ता ने अपील के फैसले में कहा है कि कई बार विकास कार्यो के लिए बाधा बन रहे कुछ पुराने पेड़ों को काटना जरूरी हो जाता है। लेकिन, उनकी जगह 4 गुना पेड लगाए जाने का राजस्व नियमों में प्रावधान इसीलिए किया गया है ताकि पर्यावरण की सुरक्षा रहे और वन क्षेत्र बढ़ता रहे।

इस प्रकरण में भी जिला कलेक्टर ने DFCCIL को नई रेललाइन परियोजना में आने वाले क्षेत्र में 4 गुना पेड़ लगाए जाने की शर्त पर ही पुराने पेड़ काटने की अनुमति दी थी। लेकिन, अब कोर्ट में यह कहना कि उनके कार्यालय में नए पेड़ लगाए जाने संबंधी कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, गंभीर स्थिति को दर्शाता है।

उल्लेखनीय है कि आरटीआई कार्यकर्ता नारायणा निवासी गौरीशंकर मालू ने अतिरिक्त जिला कलेक्टर प्रथम (राजस्व शाखा) जयपुर से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी चाही थी कि नई रेल लाइन परियोजना मार्ग में कितने हरे पेड काटे गए। उनकी एवज में कितने नए पौधे लगाए गए और उनमें कितने पौधे जीवित हैं। क्योंकि जिला कलेक्टर ने DFCCIL को 21 मार्च, 2012, 27 अगस्त, 2012 और 19 सितंबर, 2012 को नई रेल लाइन के लिए तहसील मौजमाबाद क्षेत्र में 1120, तहसील चौमूं क्षेत्र में 448 और तहसील फुलेरा क्षेत्र में 806 यानि कुल 2374 पेड़ काटने की अनुमति दी थी।

राजस्व नियमों के मुताबिक इनकी एवज में 9496 नए पौधे लगाए जाने थे। नए पौधे लग जाएं, यह सुनिश्चित करने का जिम्मा तहसीलदारों को दिया गया था। जिला कलेक्टर जयपुर ने आरटीआई की सीधे जानकारी देने के बजाय मालू के आवेदन को विभिन्न तहसीलदार, एसडीएम और अन्य स्तरों पर भेज दिया।

प्रथम अपील में भी मालू को सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई तो उसे दूसरी अपील में आना पड़ा। अब आयोग में जिला कलेक्टर की ओर से कहा गया कि उनके पास इस तरह का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरीडोर और नेशनल हाइवे प्रोजेक्टों की भी हो जांचः

उल्लेखनीय है कि दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरीडोर, एक्सप्रेस-वे और कई नेशनल हाइवे एवं नए स्टेट हाइवे पिछले दिनों बनाए गए हैं। इनके लिए हजारों की संख्या में हरे पेड़ काटे गए हैं। लेकिन, ठेकेदारों ने इनकी एवज में चार गुना नए पौधे नहीं लगाए हैं। बल्कि कुछ जगह सौंदर्यीकरण के उद्देश्य से डिवाइर और टोल प्लाजा के पास पेड़-पौधे लगाए हैं। इनकी भी गहनता से जांच की जाए तो बड़ा घपला सामने आ सकता है।

आरटीआई में हो ऑटो अपील का प्रावधानः

इधर, आरटीआई एक्टिविस्टों का कहना है कि सूचना का अधिकार अधिनियम को प्रशासनिक मशीनरी कुचलने में लगी है। यह कानून अपना उद्देश्य खोता जा रहा है। नियम तो 30 दिन में सूचना देने का है। लेकिन, संबंधित अधिकारी 29 वें दिन उस सूचना का जवाब बनाकर भेजता है जो आवेदक को करीब डेढ़ महीने में जाकर मिलता है। फिर प्रथम अपील उसी विभाग का अफसर सुनता है, 90 प्रतिशत मामलों में वह बिना कुछ सोचे-समझे अपील खारिज ही करता है।

आवेदक को दूसरी अपील में सूचना आयोग में आना पड़ता है। इस तरह सूचना लेने के लिए आवेदक सालों तक चक्कर काटता रहता है। जबकि इस कानून में ऑटो अपील का प्रावधान होना चाहिए। यानि तय अवधि 30 दिन में सूचना नहीं दिए जाने पर ऑटोमेटिक अपील उच्च स्तर पर पहुंच जानी चाहिए। आरटीआई आवेदनों के निस्तारण को संबंधित अधिकारी की एसीआर से भी जोड़ा जाना चाहिए।

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