डिजिटल से बदला जमाना तो डाकघर से लुप्त हुआ चिट्ठी-पत्री पहुंचाना, जंग खा रहे डाकघर के लेटर बॉक्स

Update: 2023-02-17 14:53 GMT

कोटा न्यूज़: एक दौर था जब अपनी बात दूसरे शहर और परिजनों तक पहुंचाने के लिए एक मात्र साधन चिट्ठियां हुआ करती थी। जिसमें जिंदगी से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात को कागज में लिखकर उसे लिफाफे में बंद करके लेटर बॉक्स में डाल देते थे। उन दिनों लाल रंग का वह लेटर बॉक्स हर कहीं दिख जाता था, लेकिन अब इंटरनेट ने लेटर बॉक्स की जगह ले ली है अब वह बीते समय की बात हो चुकी है। आज तो हाईटेक युग है। इस डिजिटल दौर में मोबाइल, इंटरनेट मीडिया आदि के माध्यम से ही हजारों किमी दूर बैठे लोगों से तुरन्त बात हो जाती है और हाल-चाल मिल जाता है। ऐसे में डाक विभाग के लेटर बाक्स का कोई मायने नहीं रह गया है। हालांकि अभी भी इसका उपयोग होता है।

मोबाइल व इंटरनेट का दिख रहा असर: मोबाइल और इंटरनेट के आने से आमजन में चिट्ठी-पत्री लिखने का चलन कम हो गया है। जिससे लेटर बॉक्स खाली पड़े रहते हैं। कुछ जगहों पर कई-कई दिनों तक लेटर बॉक्स खुलते तक नहीं है। वक्त बदलने के साथ लोग चिट्ठियों की जगह फोन करने लगे हैं। इंटरनेट आ जाने से चैट करने लगे हैं। अब लोगों को लेटर बॉक्स तो दिखता है, लेकिन चिट्ठियां नजर नहीं आती है।

अब यह होता है काम: शहरी हो या ग्रामीण अंचल चिट्ठी-पत्री के माध्यम से संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता था। जिसमें पोस्टकार्ड, अंतरदेशी लिफाफा, तार आदि माध्यम होते थे। अब मोबाइल में व्हाटसएप, टेलीग्राम, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम जैसे कई माध्यम हो गए, जिन पर एक क्लिक से संदेश ही नहीं फोटो से लेकर वीडियो तक पलक झपकते ही विश्व के किसी भी कौने तक पहुंचाया जा सकता है। हालांकि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी डाकघर संचालित हैं, लेकिन यहां अब तार, पोस्टकार्ड व अंतरदेशीय पत्र कभी कभार ही देखने को मिलते हैं। इन डाकघरों में ज्यादातर बचत खाते, आरडी व सुकन्या सृद्धि योजना सहित बैंकिय प्रणाली का कामकाज रह गया है।

कई जगह जर्जर हो चुके लेटर बॉक्स: शहर के कई स्थानों पर लगा रखे लेटर बॉक्स अपनी पहचान खो चुके हैं। वर्तमान में ग्राहकों की सहूलियत के लिए केवल प्रधान डाकघर, उप डाकघर व सभी शाखा डाकघरों में लेटर बाक्स रखा गया है। इसके पीछे मकसद यह है कि अगर ग्राहकों को कोई पत्र आदि कहीं भेजना हो तो उनको डाकघर खुलने का इंतजार न करना पड़े। बाक्स में डाक डालने के बाद उसे डाक कर्मी निकालकर जमा कर देते हैं। इसके बाद वह डाक निर्धारित जगहों पर भेज देते हैं।

डाकिया की आवाज पर लगता था मजमा: मोबाइल युग से पहले गांवों में जब डाकिया चौपाल और गलियों से गुजरता था तो उसकी एक ही आवाज पर लोगों की भीड़ इकट्ठा हो जाती। सभी सरसरी निगाहों से अपनों के संदेशों का इंतजार करते थे। जिसका संदेश पहुंचता, वह खुशी से झूम उठता और जिसके नाम से कोई चिट्ठी नहीं आती तो वह मायूस सा हो जाता था। मोबाइल और सोशल मीडिया का असर डाकघर के कामकाज पर साफ नजर आ रहा है। चंद साल पहले जब मोबाइल नहीं थे तो डाक विभाग का काफी महत्व था। अपनों के संदेश के इंतजार में लोग पोस्ट आॅफिस जाते थे और डाकिया का इंतजार किया करते थे।

डिजिटल के इस दौर में चिट्ठियों का उपयोग कम हो गया है। अब सूचना व सम्पर्क का माध्यम मोबाइल बन गए हैं। हालांकि अभी भी कई स्थानों पर लेटर बॉक्स लगे हुए हैं। इनकी केवल उपयोगिता कम हुई है। वर्तमान में डाकियों के माध्यम से नोटिस तामील कराने सहित कई कार्य करवाए जाते हैं।

-प्रशांत शर्मा, सहायक डाक अधीक्षक कोटा

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