कुपोषण मिटाने का सरकार का दावा, आंकड़े बताते हैं जमीनी हकीकत

Update: 2023-09-29 18:11 GMT
अलवर। अलवर सरकार भले ही लोगों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के खूब दावे करे, लेकिन हकीकत यह है कि जिले में कुपोषण के खिलाफ सरकारी प्रयास अधूरे साबित हो रहे हैं। यही वजह है कि अलवर जिले में कुपोषण का दंश समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। स्थिति यह है कि गत जुलाई में महिला एवं बाल विकास विभाग की स्क्रीनिंग में 3961 बच्चे कुपोषित मिले हैं। इसमें शामिल 18 बच्चे अति कुपोषण का शिकार हैं। जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। कुपोषित बच्चों के यह आंकड़े 2 लाख 12 हजार 768 बच्चों की स्क्रीनिंग में सामने आए हैं। कुपोषण की यह स्थिति इसी साल उत्पन्न नहीं हुई, बल्कि हर साल जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग इतनी ही रहती है। केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए अनेक योजनाएं संचालित की हुई है। फिर भी कुपोषण की समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसका बड़ा कारण सरकार की योजनाओं को पात्र व्यक्तियों तक लाभ नहीं पहुंचना व सही पौष्टिक आहार नहीं मिलने से भी बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे है।
बच्चों में कुपोषण का मुख्य कारण गर्भावस्था में मां के भोजन में पौष्टिक आहार की कमी सामने आ रही है। नवजात शिशुओं को मां का दूध नहीं पिलाना भी एक कारण है। इसके अलावा बच्चों को उम्र के हिसाब से सही व पौष्टिक आहार नहीं मिलने से भी वे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। अति कुपोषित बच्चों की सूचना मिलने पर उन्हें एनआरसी सेंटर शिशु अस्पताल अलवर व राजगढ़ में भर्ती कर उनकी देखरेख की जाती है। यहां बच्चों को मेडिसन व पौष्टिक आहार के साथ ही घर जैसा माहौल उपलब्ध कराया जाता है। इस दौरान बच्चों के स्वस्थ होने पर उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाता है। इसके साथ ही समय-समय पर बच्चों की जांच भी कराई जाती है। राजगढ़, लक्ष्मणगढ़, कठूमर, रैणी, थानागाजी, तिजारा व किशनगढ़बास सहित मेवात क्षेत्र में बच्चे कुपोषण का अधिक शिकार हो रहे हैं। इससे उनका शारीरिक विकास प्रभावित हो रहा है। चिकित्सा विभाग की जांच में उम्र के हिसाब से बच्चों का वजन व लंबाई के आधार पर कुपोषित बच्चों को चिन्हित किया जाता है। इसमें बालक व बालिकाओं के समान रूप से कुपोषित होने की जानकारियां सामने आ रही है।
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