मिट्टी से प्यार करेंगे तभी बढ़ेगी अंकुरण क्षमता, धरती का पीएच मान ऊपर-नीचे
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हनुमानगढ़। हनुमानगढ़ किसान मिट्टी से प्रेम करेंगे तभी खेतों में अंकुरण क्षमता बढ़ेगी। इससे भविष्य में भी अच्छी पैदावार होती रहेगी। इसके विपरीत क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग और जैविक खादों की कमी के कारण मिट्टी का पीएच मान ऊपर नीचे होता जा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जब मिट्टी में विद्युत चालकता 0.5 मिलीमीटर प्रति सेमी होती है तो बीजों का अंकुरण तेज गति से होता है। जब यह मात्रा कम या ज्यादा होती है तो मिट्टी की अंकुरण क्षमता कम होने लगती है। पिछले चार-पांच वर्षों में हनुमानगढ़ की भूमि की विद्युत चालकता 1.0 से 5.0 मिलीमोल प्रति सेमी. रही है। जो भविष्य में आने वाली खतरनाक स्थिति का संकेत देता है। जिले के पीलीबंगा के सेम प्रभावित क्षेत्रों में बड़ोपाल, जाखड़ावली और गोलूवाला के आसपास भूमि की विद्युत चालकता 4 से 5 मिमी तक पहुंच गई है। हनुमानगढ़ जिले की मिट्टी में जैविक कार्बन की औसत मात्रा 0.25 प्रतिशत है। जबकि यह 0.5 फीसदी तक होना चाहिए। कृषि में जैविक एवं गोबर खाद का कम प्रयोग तथा रासायनिक खाद का अधिक प्रयोग से ऐसी स्थिति निर्मित हो रही है। अधिक से अधिक जैविक खादों के प्रयोग से मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। जब तक मिट्टी की मिट्टी मिट्टी के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखेगी तब तक खेती की स्थिति मजबूत नहीं हो सकती है।
लम्बे समय तक अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि खेत की मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा नियमानुसार हो। तभी कृषि और मानव जीवन का भविष्य सुरक्षित रहेगा। किसान खेतों में खरीफ फसलों की बुआई की तैयारी में जुटे हुए हैं। कृषि विभाग के अधिकारी खरीफ सीजन में कम पानी, कम लागत, अधिक विकास वाली फसलों की बुवाई पर जोर दे रहे हैं। किसान वर्तमान में लगातार रासायनिक खादों और जहरीले रसायनों पर निर्भर होकर खेती कर रहे हैं। जिले में गोबर या अन्य जैविक खाद का प्रयोग न के बराबर है। भूमि की भौतिक/रासायनिक संरचना बदल रही है। ऐसे में जमीन बंजर हो सकती है। हरी खाद जैसे ढैंचा, सानी, लोबिया, ग्वार, मूंग, उड़द आदि से भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। गर्मी के मौसम में गहरी जुताई का अलग महत्व है। इसके फायदों से हर कोई वाकिफ है। गहरी जुताई वाली भूमि में सूर्य की तेज किरणें कीट/रोग के अण्डों, प्यूपा, लार्वा सहित जड़ों को उखाड़ने, जड़ सड़न के रोगजनकों तथा सूत्रकृमियों को नष्ट कर देती हैं। भूमि की जलधारण क्षमता एवं वातन में वृद्धि होती है। वैज्ञानिकों ने गर्मियों में गहरी जुताई करने से आगामी फसल की उपज में दस प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया है।