गौशाला अब स्वास्थ्य केंद्र भी है, हर गाय उतना ही कमा सकती है जितना खर्च करेगी

गौशाला अब स्वास्थ्य केंद्र भी है

Update: 2023-08-07 09:54 GMT
कोटा। कोटा गोशाला का नाम जेहन में आते ही दान से चलने वाली संस्था की छवि उभरती है। अब स्थिति बदल रही है। गोमय परिवार एवं अंशदानी फाउंडेशन के प्रयास से गोशालाएं स्वावलंबी बन रही हैं। गोशालाओं को स्वास्थ्य केंद्र का स्वरूप दिया जा रहा है। गोशालाओं को ऐसा बनाया जा रहा है कि आने वाले सेवाभावियों को स्वास्थ्य लाभ भी मिले। शुरुआत में देश के 500 जिलों की गोशालाओं में स्वास्थ्य केंद्र विकसित करने की योजना है। गोमय परिवार के फाउंडर डॉ. सीताराम गुप्ता बताते हैं कि अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए संकल्प पत्र अभियान प्रारंभ किया है। लक्ष्य देश की कम से कम 1 प्रतिशत आबादी से संकल्प पत्र भरवाना है। इसे दो चरणों में पूरा करेंगे। पहले चरण में राजस्थान में एवं दूसरे चरण में शेष भारत में। लोगों को संकल्प पत्र भरवाने के बाद उन्हें उनके नजदीक की गोशाला में एक गाय गोद दी जाएगी। उस गाय के लिए वे जो खर्च करेंगे, उसके बदले उन्हें सालभर वहां बने स्वास्थ्य केंद्र में डीटॉक्सीन किया जाएगा। इस तरह पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ गाय स्वावलंबी बन पाएगी।
ऐसे समझें गोबर का गणित : अभी संस्था गोशालाओं में गोकाष्ठ बनवा अंतिम संस्कार के लिए निशुल्क उपलब्ध करवा रहा है। गोकाष्ठ के लिए उसी गोशाला में निकला गोबर काम में लिया जाता है। एक गाय प्रतिदिन 7 से 8 किलो गोबर देती है। गोशाला में यदि 125 गायें हैं तो 1000 किलो गोबर होता है। संस्था यह गोबर 6 रुपए प्रतिकिलो खरीदती है। यानी गोशाला को रोज 6 हजार रुपए मिलते हंै। एक मशीन एक दिन में 1000 किलो गोबर की गोकाष्ठ बनाती है जो सूखने पर 500 किलो रहती है। इससे 2 अंतिम संस्कार हो जाते हैं। 2 अंतिम संस्कार में करीब 4 पेड़ जलते हैं। ‘हर घर गोमय’ अभियान जयपुर के साथ ही कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ में प्रारंभ कर दिया है। अब बीकानेर व सीकर जिले में भी शुरू होगा। कोटा जोन के कोऑर्डिनेटर परितोष गोविल के अनुसार प्रदेश में गोमय परिवार व अंशदान फाउंडेशन गायों को आत्मनिर्भर बना रही है। संस्था का मानना है कि गाय के गोबर आैर गोमूत्र से गोकाष्ठ समेत 250 उत्पाद बनते हैं। इनका सही इस्तेमाल किया जाए तो प्रति गाय जितना खर्च होता है उससे ज्यादा वह कमाकर देती है।
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