अजमेर। अजमेर शहर से जुड़ी एजेंसियां व उनके अफसर- इंजीनियर खर्च करो भूल जाओ की नीति पर काम कर रहे हैं। बीते पांच-छह साल में करोड़ों रुपए के छोटे-बड़े प्रोजेक्ट शहर में तैयार किए गए। इनका लोकार्पण भी हुआ। इतना खर्च करने के बाद इनका आमजन को कितना और किस तरह लाभ मिल रहा, इसका अध्ययन नहीं हो रहा है। नियमानुसार बड़े पुल, एलिवेटेड रोड, पर्यटन अथवा अन्य जन सुविधाओं से जुड़े प्रोजेक्ट तैयार करने से पहले रिसर्च की जाती है। प्रोजेक्ट आमजन के लिए फायदेमंद है या नहीं इसका स्थानीय स्तर पर डाटा एकत्रित होता है। निर्माण पूरा होने के बाद भी एजेंसियां प्रोजेक्ट की वस्तुस्थिति जानने के लिए कामकाज करती हैं।
साल 2016-17 से नगरीय परिवहन सेवा शुरू की गई। इसकी नोडल एजेंसी नगर निगम है। बसें किशनगढ़, तबीजी, जनाना अस्पताल, पुष्कर रोड सहित शहर के विभिन्न इलाकों में संचालित हैं। इनमें कितना यात्री भार है, इसका आकलन टिकट से हो रहा है, लेकिन सेवाओं में बढ़ोतरी अथवा अन्य रूट को लेकर कोई सर्वेक्षण नहीं है। नियमानुसार इसका दायरा बढ़ना चाहिए पर बसों की संख्या नहीं बढ़ रही है।
अधिकारी व विभाग की ड्यूटी होती है कि वह प्रत्येक कार्य की सार्थकता, उपयोगिता व आमजन को लाभ हानि की स्थिति देखे, लेकिन वास्तव में ऐसा कोई शोध या रिसर्च नहीं किया जाता। अफसर आते हैं चले जाते हैं। जब तक शहर को समझें तबादले हो जाते हैं। ऐसे में बजट पर सभी की निगाहें होती हैं। बेसिक दर से कम दर में निविदाएं छूटती हैं उसमें भी ठेकेदारों को कथित सुविधा शुल्क देना होता है। तो गुणवत्ता व काम की सार्थकता दरकिनार हो जाती है। शहर के लोगों से पूछा तक नहीं जाता। जनप्रतिनिधियों का दखल कागजी रहता है।