7 गांवों के बच्चों को पढ़ाई के लिए नाव से जाना पड़ता है स्कूल, जानें मामला
पढ़ाई के लिए नाव से जाना पड़ता है स्कूल
भीलवाड़ा। भीलवाड़ा आजादी के सात दशक बाद भी कई गांव ऐसे हैं जो आज भी विकास की बाट जोह रहे हैं। ऐसा ही मामला आदर्श गांव रहे बकरा का है। यहां 7 गांवों के बच्चे पिछले चार साल से टूटी नाव में बैठकर स्कूल जाते हैं। बाग झोपड़ी, हर्षालोन झोपड़ी, बगरथल, भीमपुरा, केसरपुरा, मेलवा, उतरना गांव समेत ऐसे कई गांव हैं। 12 माह में से 9 माह नाव में बैठकर ग्राम पंचायत मुख्यालय आना-जाना पड़ता है। इस समस्या को लेकर वर्ष 2022 में बीज निगम अध्यक्ष धीरज गुर्जर की संस्तुति पर डीएमएफटी कोष से सड़क व पुलिया निर्माण के लिए करीब एक करोड़ 25 लाख रुपये स्वीकृत किये गये. ठेकेदार ने जनवरी में इस सड़क का काम शुरू किया था, लेकिन काम की धीमी गति के कारण सफाई और हल्की गिट्टी के बजाय सड़क के दोनों ओर बड़े-बड़े पत्थर डाल दिए गए। इससे सड़क पर निकलना मतलब हादसे को न्योता देना है।
ग्रामीणों ने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को कई बार अवगत कराकर रोलर चलाने का अनुरोध किया. लेकिन विभाग ने ग्रामीणों की शिकायत को अनसुना कर दिया। वहीं ग्रामीणों ने बताया कि चार साल बाद पुलिया की समस्या से निजात मिलने की उम्मीद जगी थी, लेकिन मानसून आने से पहले पुलिया का निर्माण नहीं हुआ तो दो दिनों तक नदी का पानी खाली नहीं रहेगा. साल। इससे ग्रामीणों को 2 साल तक हर बार की तरह जुगाड़ की नाव से निकलना पड़ेगा। ग्रामीणों ने इस संबंध में बीज निगम अध्यक्ष गुर्जर सहित उच्चाधिकारियों को ज्ञापन देकर कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन लोक निर्माण विभाग ने ग्रामीणों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया.
ग्रामीणों ने बताया कि इस पुलिया का निर्माण वर्ष 2011 में नरेगा के माध्यम से कराया गया था लेकिन वर्ष 2019 में पानी के तेज बहाव के कारण यह पुलिया टूट गयी. जिसके बाद चार साल तक साल के नौ महीने तीन किलोमीटर कच्ची सड़क और कीचड़ पर निकलकर आम जनता टूटी-फूटी नाव पर रस्सी के सहारे चलने को विवश है. ग्राम पंचायत की 80 फीसदी आबादी की जमीन नदी के उस पार है। इससे पशुओं को चारा लाने व आने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।