अजमेर में 1073 वर्ष पूर्व चालीहो महोत्सव की शुरुआत सिंध के ठठा गांव से हुई

Update: 2023-07-14 12:18 GMT

अजमेर: अजमेर सिंधी समाज के बड़े पर्वों में शामिल चालीहो महोत्सव 16 जुलाई से शुरू होगा। अजमेर में यह पर्व बड़े स्तर पर पिछले 24 साल से मनाया जा रहा है। घर-घर महोत्सव बनाने की शुरुआत अजमेर से ही 22 साल पहले हुई थी। यह परंपरा अब अब देशभर में जगह बनाने लगी है। सिंधी समाज ने महोत्सव को लेकर तैयारियां तेज कर दी है। 40 दिन तक घर-घर प्रार्थना सभाओं के लिए रजिस्ट्रेशन कराया जा रहा है। यह महोत्सव करीब 1073 साल से मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत सिंध प्रांत में वरुण देवता के भगवान झूलेलाल के रूप में अवतरित होने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। तब सिंध नदी के किनारे 40 दिनों तक लोगों ने उपवास रख कर प्रार्थना की थी और उसके फलस्वरूप भगवान झूलेलाल के रूप में वरुण देवता ने उनकी मनोकामना पूरी की थी।

जयपुर निवासी साहित्यकार गोविंदराम ‘माया’ बताते हैं कि चालीहो महोत्सव को लेकर किवदंती है कि उस वक्त 40 दिन तक चला युद्ध खत्म होने की खुशी में इसे मनाया जाता है। शरीर का शुद्धिकरण आत्मीय शुद्धिकरण करने का पर्व है। इसमें चालीस दिन तक उपवास किया जाता है। प्रार्थना की जाती है। इस दौरान आध्यात्मिक (धर्म), शारीरिक(स्वास्थ्य) और सांसारिक उन्नति की मनोकामना की जाती है। सिंधु समिति के सेवादार महेंद्र तीर्थानी के मुताबिक इस बार चालीहाे महोत्सव में युवा पीढ़ी को सिंधु संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए संगोष्ठी हाेगी, जिसमें सिंध प्रांत से शुरू हुई संस्कृति से लेकर समाज के संघर्ष और उत्थानों से भी परिचित कराया जाएगा। यह महोत्सव इच्छापूर्ण झूलेलाल मंदिर चांदबावड़ी और झूलेलाल सिंधु समिति के संयुक्त तत्वावधान में होगा। समापन वाले दिन धार्मिक आयोजन होंगे। समाज के संतों का सानिध्य भी मिलेगा। पंचमहाज्योति, दीपदान और महाआरती का आयोजन भी इन 40 दिनों में अलग अलग मंदिरों में होगा। उन्होंने बताया कि बहिराणा साहिब की पवित्र ज्योत भी रोशन होगी।

इतिहास: सिंधु के तट पर वरुण देवता ने अवतार लिया...इसके बाद लोगों के दुख दूर हुए महेंद्र तीर्थानी ने बताया कि चालीहो महोत्सव पहली बार सिंध प्रांत में विक्रम संवत 1007 में मनाया गया था। अभी विक्रम संवत 2080 चल रहा है। यानी 1073 साल पहले पहली बार यह महोत्सव मनाया गया था। इसके पीछे कहानी यह है कि सिंध प्रांत (अब पाकिस्तान में) में ठठा नगर है। जब तुर्कों ने सिंध को राजधानी बनाया, तब सबसे पहले कासिम ने राज किया। चार सौ साल बाद मिर्ख नाम का बादशाह राज करने लगा। वज़ीर का नाम अहा था, जो मंदबुद्धि और कपटी था। उसने सब हिंदुओं को एक स्थान पर बुलाकर कहा कि बादशाह का हुक्म है कि आप सब अपना जनेऊ और माला उतार दो और यवन मंत्र का उच्चारण करो। जो नहीं मानेगा, उसे मार दिया जाएगा। इसके बाद सभी लोग सिंधु के तट पर आए और वरुण देवता का जाप किया। इस तरह निराहार भजन, कीर्तन और प्रार्थना की। फलस्वरूप वरुण देवता ने अवतार लिया। इसके बाद लोगों के दुख दूर हुए।

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