हनुमानगढ़। राइट टू हेल्थ बिल लोकलुभावन घोषणा है जिसे राज्य सरकार अपने चुनावी फायदे के लिए प्राइवेट अस्पतालों पर जबरन थोप रही है। आमजन को स्वास्थ्य का अधिकार देना चाहिए लेकिन सेवा प्रदाता प्राइवेट अस्पतालों को बिना कुछ दिए यह कैसे संभव है। एक तरफ सरकार चिकित्सा को सेवा का माध्यम बताती है तो दूसरी तरफ अस्पताल की जमीन का पट्टा, बिजली या अन्य कोई सुविधा सभी में कॉमर्शियल दरें वसूलती हैं। अगर चिकित्सा सेवा का ही माध्यम है तो क्या निजी अस्पतालों को भी सरकारी अस्पतालों की तरह बिल्डिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्टाफ नहीं मिलना चाहिए।सरकार यह सबकुछ देने की बजाए प्राइवेट अस्पतालों से डंडे के जोर पर मुफ्त इलाज की सेवाएं लेना चाहती है जोकि संभव नहीं है। खुद के अस्पतालों में लोगों को मुफ्त सेवाएं देने में विफल सरकार 70 फीसदी से अधिक लोगों को चिकित्सा सुविधा देने वाले निजी अस्पतालों पर ही दबाव बना रही है।
इसलिए ही प्राइवेट डॉक्टर्स आंदोलन कर रहे हैं। यही हाल रहा तो डॉक्टर्स को पलायन करना पड़ेगा और दूसरा व्यवसाय करना पड़ेगा। यह कहना है पिछले छह दिनों से आरटीएच के विरोध में हड़ताल कर रहे निजी डॉक्टर्स का। जानिए, शुक्रवार को भास्कर के टॉक शो में डॉक्टर्स ने आरटीएच को लेकर क्या कहा.... आईएमए जिलाध्यक्ष डॉ. भवानी ऐरन ने कहा कि चिकित्सा मंत्री जयपुर के कुछ अस्पतालों पर गलत करने का बयान दे रहे हैं लेकिन उन पर कार्रवाई करने की बजाए प्रदेश के सभी डॉक्टर्स को प्रताड़ित क्यों कर रहे हैं। सरकार ने बिल को लेकर डॉक्टर्स के न तो सुझाव माने और न ही जांच कमेटी में एक्सपर्ट को शामिल किया। प्रशासनिक अफसर कैसे शिकायतों की जांच करेंगे। इसमें सिंगल विंडो सिस्टम के साथ ही कमेटी शिकायत को एक्सपर्ट को निर्णय के लिए रेफर करने की व्यवस्था होनी चाहिए थी लेकिन सरकार ने खुद के फायदे के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी परवाह नहीं की। इस बिल का नाम राइट टू हेल्थ नहीं बल्कि राइट टू ट्रीटमेंट होना चाहिए।