अरावली क्षेत्र भालुओं के लिए सबसे उपयुक्त

Update: 2023-07-14 11:49 GMT

अलवर न्यूज़: भालुओं के लिए अरावली क्षेत्र सबसे उपयुक्त जगह है। यहां की गुफाएं और जंगल उसे अच्छा वातावरण देते हैं। भालुओं को पीने के पानी की सुलभ उपलब्धता चाहिए। शोध कहता है कि टाइगर और भालुओं का कभी झगड़ा नहीं होता। यह कहना था गुजरात नॉर्थ यूनिवर्सिटी के प्रो. डॉ. निशिथ धार्रया का। वे राजर्षि कॉलेज द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत विकास के लक्ष्य विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में दूसरे दिन गुरुवार को अपना शोधपत्र प्रस्तुत कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि भालुओं को मीठे फल, कीडे-मकोड़े व शहद अच्छे लगते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार व वन विभाग इस बात पर जरूर ध्यान दे कि भालुओं की प्रजनन काल से लेकर बच्चे के जन्म तक सुरक्षा की व्यवस्था हो। मादा भालू की गुफा के आसपास कोई दखल नहीं हो।

भालू का प्रजनन काल जुलाई से अगस्त के बीच रहता है और 6 से 8 महीने में मादा भालू बच्चे को जन्म देती है। सरिस्का इंटरवेंशन सेंटर पर उन्होंने कहा कि एक ही फार्मूला सभी जगह पर फिट नहीं हो सकता। इसलिए टाइगर व शेर की तरह भालुओं को बचाने के लिए प्रयास जरूरी हैं। बांग्लादेश में 2007 तक काफी संख्या में भालू थे, जो 2011 में विलुप्त हो गए।

जब हम पृथ्वी व पेड़ों की पूजा करते हैं तो इनकी रक्षा क्यों नहीं करते : प्रो. राव

जेएनयू दिल्ली के वरिष्ठ आचार्य प्रो. उपेंद्र राव ने अपने शोधपत्र के जरिए प्राचीन साहित्य में पर्यावरण के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि प्राचीन ग्रंथों में पर्यावरण संबंधित नैतिक मूल्यों का स्पष्ट उल्लेख है। महाभारत व रामायण में साफ लिखा है कि हमें प्रकृति के साथ कैसे जीना है? पेड़ देख सकते हैं, सुन सकते हैं। मतलब उनमें प्राण हैं और मानव किसी के प्राण कैसे ले सकता है? पेड़ों से ही वन है। जीवों की हिंसा करने से पर्यावरण कैसे सुरक्षित रह सकता है? पर्यावरण की उत्पत्ति ही संस्कृत से हुई है। प्राचीन ग्रंथों में पृथ्वी और पंच तत्वों के बारे में लिखा है। कॉन्फ्रेंस में ऑनलाइन तकनीकी सत्र में 339 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए।

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