पशुओं को लेकर 400 साल पुरानी अनोखी परंपरा, सींग पर बंधे पैसे और नारियल लूटते हैं गांव वाले
रायपुर तहसील के क़ानूजा गांव में 400 साल से भी अधिक समय से पशु को दौड़ाने और उन्हें पकड़ने की परंपरा है जो दिवाली की शाम और गोवर्धन पूजा के सुबह होती है जिसमें पूरा गांव इकठ्ठा होता है.
पाली: राजस्थान के पाली जिले में दिवाली के अगले दिन पशुओं को लेकर एक अनोखी परंपरा का निर्वहन होता है. पाली जिले के रायपुर तहसील के क़ानूजा गांव में 400 साल से भी अधिक समय से पशु को दौड़ाने और उन्हें पकड़ने की परंपरा है जो दिवाली की शाम और गोवर्धन पूजा के सुबह होती है जिसमें पूरा गांव इकठ्ठा होता है.
इससे पहले पशुओं को रंगों से रंगा जाता और रूमाल-माला से श्रृंगार कर इनके सींग पर पैसा और नारियल बांधा जाता है. इनको लूटने की परंपरा है. गांव के एक तरफ स्कूल, दूसरी ओर पंचायत घर और सामने तीसरी ओर गली में बाड़े में पशु को लाकर सुरक्षित बांधा जाता है.
पशुओं को तेजी से दौड़ाया जाता है
गांव के मैदान में बच्चे-महिलाएं, बुजुर्ग ऊपर नीचे अपना स्थान पहले सुरक्षित कर लेते हैं. युवा मैदान में लकड़ी लेकर गले में पट्टा बांधकर तैयार रहते हैं और कहते हैं आने दो...ऐसा कहते ही दो से तीन पशुओं को तेजी से दौड़ाया जाता है. कुछ लोग लकड़ी मारते हैं तो कुछ पटाखे छोड़ पशुओं को क्रोधित करते हैं.
पशुओं के रास्ते में खड़े युवा इन पशुओं को रोकते हैं और उनके सींग में बंधे पैसे और नारियल लेने का प्रयास करते हैं. इस चक्कर में अनेकों लोग नीचे गिर जाते हैं पर किसी को ज्यादा चोट नहीं लगती.
ऐसी मान्यता है कि जो युवा हैं वह ग्वाले के प्रतीक हैं और जो पशु हैं वह कृष्ण प्रेम का प्रतीक हैं. ग्वाले अपने पशुओं को सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं. पशु जितना तेज दौड़ते हैं, उतनी ही गांवों में संपन्नता बढ़ती है. इसीलिए गोवर्धन पूजा के रोज इसका महत्व है. हजारों लोग ऐसे समय में यहां आते हैं.