Punjab पंजाब : हाल ही में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने स्वर्ण मंदिर और अन्य ऐतिहासिक गुरुद्वारों के गर्भगृह में श्रद्धालुओं को रुमाल चढ़ाने से हतोत्साहित किया है, जिससे यह अनुष्ठान आभासी हो गया है।अधिकतर घटिया किस्म के रुमालों की अधिक मात्रा में इकठ्ठा होने से रोकने के लिए एसजीपीसी ने समर्पित काउंटर स्थापित करने का फैसला किया है, जहां श्रद्धालु रुमालों के बदले भेटा (प्रसाद) जमा कर सकते हैं।
श्रद्धालुओं को रसीद दी जाएगी, जिससे वे सिख धर्मस्थलों के गुरु दरबार (गर्भगृह) में विशेष अरदास करवा सकेंगे। एसजीपीसी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि रुमालों के बदले में एकत्र किए गए भेटे का इस्तेमाल सिख समुदाय के कल्याण के लिए किया जाएगा। रुमाल बड़ी मात्रा में चढ़ाए जाते हैं। गुरुद्वारा प्रबंधन के लिए उनकी देखभाल करना एक बोझिल काम है," धामी ने कहा। नई दिल्ली के श्रद्धालु जसबीर सिंह ने कहा कि एसजीपीसी के तर्क से सहमत नहीं हुआ जा सकता। श्रद्धालुओं की आस्था एसजीपीसी की सूची में अंतिम आइटम लगती है। सिख धर्म में श्रद्धालु गुरु से ‘वचन’ लेते हैं कि अगर उनकी इच्छा पूरी होती है तो वे गुरुद्वारे में ‘रुमाला’ चढ़ाएंगे।
रुमाला निर्माता जतिंदर सिंह ने कहा कि एसजीपीसी के इस फैसले से हजारों कारीगरों और वितरकों की नौकरियां चली जाएंगी। हेरिटेज स्ट्रीट पर ‘रुमाला’ बेचने वाले सतनाम सिंह ने कहा, ‘रुमाला चढ़ाना गुरु के जमाने से चली आ रही रस्म है। एसजीपीसी ने अपने प्रबंधन के लिए इसमें बदलाव किया, लेकिन सैकड़ों परिवारों के बारे में कभी नहीं सोचा, जो अपनी आय का स्रोत खो देंगे।एसजीपीसी के फैसले का समर्थन करते हुए तख्त श्री दमदमा साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी केवल सिंह ने कहा कि सिखों की ‘रहत मर्यादा’ के लिए कभी भी गुरुद्वारे में ‘रुमाला’ चढ़ाना जरूरी नहीं था। उन्होंने कहा, "बल्कि 'रहत मर्यादा' हमें गुरुद्वारों में जरूरत के मुताबिक उपयोगी कामों पर पैसा खर्च करने का निर्देश देती है। यह गलत धारणा है कि गुरुद्वारों में 'रुमाल' चढ़ाने के बाद ही तीर्थयात्रा पूरी हो जाएगी।"