लोगों की उपलब्धियां देख बेटी को जज बनाने का देखा सपना, बेटी ने हरियाणा में जज बन किया साकार
जालंधर में पिता के सपनों को पंख लगा बेटी हरियाणा कैडर की जज बनी। जालंधर के साधारण परिवार में जन्मी जसमीत ने 2019 में लॉ की डिग्री की थी। पिता परमजीत की कपड़ों की दुकान है, उन्होंने अखबारों में लोगों की उपलब्धियां देख बेटी को जज बनाने का सपना देखा था।
कोविड-19 के दौरान लॉ की डिग्री करने वाली जालंधर की बेटी जसमीत कौर हरियाणा कैडर की जज बनी, उन्होंने 36वां रैंक हासिल किया। जसमीत ने बताया कि सेंट सोल्जर लॉ कॉलेज जालंधर से डिग्री करने के बाद वह ज्युडिशियरी की तैयारियों में जुट गईं क्योंकि उनके पिता का सपना था कि बेटी जज बने।
बचपन का वाकया बताते हुए जसमीत ने कहा कि वह 11वीं की छात्रा थी तब पिता परमजीत सिंह, जोकि दकोहा (रामा मंडी) में कपड़े की दुकान चलाते थे, वह अखबार में दूसरों की उपलब्धियां पढ़कर बोले बेटी तुम्हें जज ही बनना है और हर परीक्षा में टॉप करना है।
उनकी स्कूलिंग के दौरान पिता को बड़ी बहन करनजीत कौर और छोटे भाई हुसनप्रीत से ज्यादा उससे उम्मीदें थी। पिता की जज बनने के सपनों को संजो उसने लॉ की पढ़ाई शुरू की तो मां जोकि घर में अकेली ग्रेजुएट थी वह मार्गदर्शन के साथ उसकी सभी जरूरतों का ख्याल रखतीं। 2019 में लॉ की डिग्री पूरी करने के बाद वह चंडीगढ़ गईं जहां उन्हें एक संस्थान ने फ्री में कोचिंग दी, मॉक टेस्ट और इंटरव्यू जैसी अहम तैयारियों की कोचिंग के बिना वह घर में रहकर ऑनलाइन पढ़ाई करती रहीं।
इन 3 सालों में काफी संघर्ष के बाद हरियाणा कैडर की वेकेंसी निकली तो वह खुशी से झूम उठी क्योंकि कोविड-19 के बाद से पंजाब-हरियाणा में जजों की कोई वेकेंसी नहीं निकली थी। उसने परीक्षा की तारीखों के एलान के बाद 16 से 18 घंटे पढ़ाई की और पिता के सपने को साकार किया।
जब सोमवार को रिजल्ट आया तो पिता परमजीत सिंह, मां परमजीत कौर, बड़ी बहन करणदीप कौर और भाई हुस्नप्रीत सिंह की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। बेटी जसमीत का मुंह मीठा करवाते हुए पूरे परिवार की आंखों में खुशी के आंसू थे क्योंकि पिता के सपनों को बेटी ने पंख लगा दिए थे।
पंजाब में भी संभावनाएं हैं लेकिन वेकेंसी देर से आई
जसमीत ने कहा कि जब वह लॉ कॉलेज से डिग्री लेकर निकली तो सही मौके का इंतजार था और पंजाब से पहले हरियाणा में जजों की वेकेंसी निकली। ऐसा नहीं है कि पंजाब में संभावनाएं कम हैं लेकिन उसका लक्ष्य सिर्फ जज बनना था जिसकी वेकेंसी पहले हरियाणा में निकली।
मेरी बेटी की उपलब्धि ने मुझे बताया... बेटियां किसी से कम नहीं
पिता परमजीत सिंह का कहना है कि जब मुझे दो बेटियां हुईं तो उनकी परवरिश और पढ़ाई को लेकर काफी चिंता थी। बड़ी बेटी और बेटे से ज्यादा छोटी बेटी से जो आशाएं थी वह उन पर खरी उतरती गई। स्कूल और कॉलेज में टॉप करने के बाद बेटी ने जज बनकर दिखा दिया कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं।
एक संयुक्त परिवार में रहकर बेटी ने घर के कामों और पढ़ाई दोनों को एक साथ किया। कॉलेज के दौरान इंटर्नशिप में ही थोड़ी बहुत वकालत देखी है उसके बाद नहीं। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि बेटी को कोचिंग करवा सकें। लॉ की डिग्री करने के बाद बेटी को वकालत नहीं करवाई क्योंकि उसे वकील नहीं जज बनाना था।