चंडीगढ़: जुलाई माह के दौरान हुई भारी बारिश से पंजाब की अर्थ व्यवस्था को बड़ा धक्का लगा है। पंजाब के गेहूं-धान ने पिछले कई दशकों से देश की खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं में लगातार योगदान दिया है लेकिन इस बार बारिश से आई बाढ़ और कई जगह नहरों में आई दरारों के कारण हुए जलभराव से पंजाब का धान किसान संकट में है। उनकी 60 प्रतिशत खेती योग्य जमीन पानी में डूब चुकी है।
किसानों का मानना है कि जहां बाढ़ या जलभराव से फसलों को नुक्सान हुआ है, वहीं धान की रोपाई में भी दिक्कत आएगी। पंजाब में मुख्य तौर पर खरीफ सीजन में चावल, मक्की, गन्ना, नरमा-कपास आदि की खेती होती है और जो हालात बने हुए हैं उसमें पंजाब में धान की फसल की पैदावार गिरने की आशंका है जिसका असर देश में चावल की खपत पर सीधे तौर पर पड़ेगा। गौरतलब है कि 2021-22 के खरीफ सीजन में पंजाब ने केंद्रीय पूल में 56.81 मिलियन टन की कुल चावल खरीद में 12.5 मिलियन टन यानी 21 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया। पंजाब का क्षेत्रफल 50.33 लाख हैक्टेयर है, जिसमें से लगभग 41.27 लाख हैक्टेयर का उपयोग खेती के लिए किया जाता है।
उत्पादकता की दृष्टि से किसानों ने देरी से धान की बुआई की थी ताकि मानसून की बारिश का फायदा उनकी फसल को मिल सके। मगर अनियमित मानसून ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब दोबारा यदि धान की बुआई करते हैं तो इस सीजन में फसल कैलेंडर के गड़बड़ाने के आसार हैं। अभी कभी मानसून तो कभी पश्चिमी विक्षोभ रह-रह कर बारिश कर रहा है। इससे धान की रोपाई और अन्य फसलों की बिजाई में देरी हो रही है। ऐसी भी उम्मीद है कि पंजाब का धान किसान मक्का जैसी छोटी अवधि की फसलों की ओर रुख करे। हालांकि यह बेहद मामूली बदलाव होगा। इस खरीफ सीजन में यदि कम समय में पकने वाली फसलें न लगीं तो उसका रबी की बिजाई पर सीधे असर पड़ेगा।
बाढ़ और जलभराव के कारण सूबे में बीमारियां फैलने का खतरा भी बढ़ गया है। पटियाला की डॉ. हरशिंदर कौर बताती हैं कि लू की शिकायतें बढऩे लगी हैं। इसके अलावा स्किन, दस्त-उल्टियां, मलेरिया, डेंगू, पीलिया, हैपेटाइटिस ए और ई, उमस के कारण सांस लेने में दिक्कत, दमा, निमोनिया और टाइफाइड का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि हालांकि ये बीमारियां बच्चों और बड़ों किसी को भी हो सकती हैं मगर बच्चों की खास देखभाल की जरूरत है।
किसानों की मानें तो सूबे के 19 जिलों में भारी बारिश, बाढ़ और जलभराव से लगभग 6 लाख एकड़ खेत पानी में डूबे हुए हैं। इनमें से 2 लाख एकड़ में धान की दोबारा रोपाई मुश्किल है। कुल मिलाकर खरीफ फसलों का उत्पादन इस नुक्सान के कारण 25 प्रतिशत तक गिर सकता है। किसानों का नुक्सान इसलिए ज्यादा हुआ है क्योंकि करीब 90 प्रतिशत धान लग चुकी थी।
सूबे में बाढ़ का खतरा इसलिए ज्यादा बढ़ता है क्योंकि नहरों की सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता। 2019 में आई बाढ़ के बाद पंजाब सरकार के माइंस और जियोलॉजी डिपार्टमैंट ने 2020 में एक रिपोर्ट दी थी। इसके मुताबिक नदियां पहाड़ों से आते हुए साथ में गाद लाती हैं। गाद आकर मैदानी इलाके में नदी में जमा होने लगती है और इससे नदी की क्षमता हर साल कम होती जाती है। इसके चलते पंजाब में नदियों की जल-वहन क्षमता धीरे-धीरे कम हो रही है। इस रिपोर्ट में कहा गया था किनदियों के तल में 5 से 12 फीट तक गाद जमा हो गई है। साथ ही नदियों में चौथाई तक चौड़ाई में 7000 लाख मीट्रिक टन से अधिक रेत, बजरी और टूटे पत्थर पड़े हैं। यदि इसे हटा दिया जाए तो नदी की क्षमता 15,000 से 50,000 क्यूसिक तक बढ़ सकती है। नदियों की खुदाई से नदी के बहाव की दिशा बदलने और तटबंधों को नुक्सान से भी रोका जा सकता है।
इन जिलों में हुआ ज्यादा नुक्सान
मोहाली, रोपड़, मोगा, संगरूर, लुधियाना, पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, मानसा, कपूरथला, जालंधर और गुरदासपुर जिलों में फसल को ज्यादा नुक्सान हुआ है। मानसा और फाजिल्का जिलों में बारिश तो कम हुई मगर घग्गर के पानी ने मानसा जिले और सतलुज ने फाजिल्का में नुक्सान किया। एक अनुमान के अनुसार पंजाब में 74 लाख एकड़ से अधिक में धान बोया जाता है।