डीसी विनय प्रताप सिंह ने मनीषीसंत से लिया आर्शीवाद

Update: 2023-06-22 16:54 GMT

चंडीगढ। मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने आज चंडीगढ के डीसी विनय प्रताप सिंह से मुलाकात की। इस दौरान विनय प्रताप ने मनीषीसंत से आर्शीवाद लिया और कहा जब से मै चंडीगढ आया हूं मैने मनीषीसंत के बारे मे बेहद सुना है वे चंडीगढ को चंडीगढ की पहचान दे रहे है और समाज के हर पहलू पर अपने प्रवचन और लेखन के माध्यम नई दिशा देने का भरसक प्रयास करते रहते हेै। युवाओं मे मनीषीसंत की अनूठी पकड है।

इस दौरान डीसी विनय प्रताप ने मनीषीसंत से आचार्यश्री महाश्रमण जी के चंडीगढ चतुमार्स के बारे मे गहन चर्चा की और आशा व्यक्त की जल्द से जल्द मनीषीसंत किसी निश्चित जगह का चयन करे जिससे कि जल्दी से जल्दी वहां पर कार्य प्रगति को तेज किया जाये।

गतिशीलता ही जीवन मे लाती है आनंद: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

कभी-कभी सोचता हूँ कि जिंदगी हमें चलाती है या हम उसे...क्या जिंदगी में बस वहीँ सब होना चाहिए जो केवल और केवल हम चाहते है...क्या जिंदगी में सबकुछ खुशी ही होती है या दु:ख का मतलब भी समझ में आना चाहिए...हमें कभी-कभार अंदाजा भी नही लग पाता कि जिंदगी को हमसे क्या चाहिए...और हम उसे क्या दे रहे हैं...हमारे कुछ फैसले,हमें उन नतीजों तक लेकर जाते हैं जिसकी कल्पना हमने कि भी नही थी...फिर दोष किस पर डालें...जिंदगी पर या अपने-आप पर... जिंदगी के सफर में हम कुछ राहें चुनते हैं...मंजिल की खोज में आगे बढते हैं,पर मंजिल का कोई अता-पता नही...तो राहें गलत थी या हमारा फैसला। ये शब्द मनीषी संत मुनि श्रीविनयकुमारजी आलोक ने सैक्टर 18सी गोयल भवन 1051 मे आज अंतराष्ष्ट्रीय योग दिवस पर संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा निश्चित रूप से गतिशील होने में तकलीफ तो होगी। लेकिन मैं समझता हूँ कि गतिशील न रहने में शायद उससे भी अधिक तकलीफ हो जाती है। इसके बावजूद ज्यादातर विद्यार्थी गतिहीनता को ही पसंद करते हैं। वे अपने स्थान से हिलना नहीं चाहते। वे अपने स्थान से दूसरी जगह जानानहीं चाहते। वे अपने आसपास के वातावरण के अपनी चल रही जीवन पद्धति के चाहे वह कितनी ही बेकार क्यों न हो, इतने अधिक अभ्यस्त हो जाते हैं कि उससे निकलने में उन्हें बहुत तकलीफ होने लगती है। और बस यही जीवन के सारे अवसर और सारा समय उन्हें छोडक़र किसी और के पास चला जाता है। होम सिकनेस इसी तरह की गतिहीनता का सबसे अच्छा, किंतु सबसे बुरा उदाहरण है, जिसके शिकार होकर न जाने कितने विद्यार्थियों ने अपने अच्छे भविष्य के साथ गलत सौदेबाजी कर ली है।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि आप भी अपने गाँव को छोडक़र शहर आ जाइए। मेरे कहने का मतलब केवल इतना ही है कि आप जो काम कर रहे हैं, उसके लिए जहाँ भी जाना हो, खुले और प्रसन्ना मन से जाएँ, क्योंकि तभी आप उस काम को अच्छी तरह से कर सकेंगे। तभी आपके समय का सही उपयोग हो सकेगा। घर के प्रति मोह होना गलत बात नहीं है। लेकिन उसे अपनी कमजोरी बना लेना गलत है।वह आपकी शक्ति होनी चाहिए। कछुआ और खरगोश दोस्त नहीं हो सकते। यदि आपको समय के साथ मित्रता निभानी है तो स्वयं को गतिशील करना होगा। शारीरिक और मानसिक रूप से हमेशा गतिशील रहिए। जहाँ आप हैं और अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, वहाँ की गतिविधियों में भी भाग लेना गतिशील होना है। अपने कमरा, कुर्सी, टेबल और बिस्तर तक सीमित मत कीजिए। इससे आप जीवन के बहुत से खूबसूरत अवसरों को खो देंगे।

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