बाड़मेर मेडिकल कॉलेज में 2 साल में हुए केवल 2 देहदान

Update: 2022-03-03 07:26 GMT

मेडिकल कॉलेज तो नए खुल गए और यहां पर पढ़ाई भी शुरू हो गई, लेकिन मेडिकोज की पढ़ाई का महत्वपूर्ण हिस्सा प्रेक्टिकल क्लास में बाधा आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि कॉलेजों की आवश्यकता अनुसार उन्हें मानव देह (केडेवर) नहीं मिल पा रही है। कॉलेज को देहदान के माध्यम से मानव देह मिलती है। लेकिन जागरूकता की कमी और देहदान बहुत ही कम होते हैं। इसलिए नए खुले कॉलेजों को मानव देह के लिए बड़े शहरों के आयुर्विज्ञान महाविद्यालयों पर निर्भर रहना पड़ता है और वहीं से उन्हें उपलब्ध होती है। इसमें यह भी है कि उन्हें जरूरत के अनुसार मानव देह नहीं मिल पाती है। ऐसे में मेडिकोज की प्रेक्टिकल क्लास प्रभावित होती है। इसमें नए कॉलजों के लिए मानव देह की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती भी है। मानव देह के लिए अन्य कॉलजों की ओर देखना पड़ता है और वहां से मिलने पर ही मेडिकोज के प्रेक्टिकल संभव हो पाते हैं। इसमें यह भी है कि बड़े शहरों के मेडिकल कॉलेज पहले अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद अन्य कॉलेजों को मानव देह उपलब्ध करवा रहे हैं। इसके कारण नए कॉलेजों को मानव देह के लिए इंतजार भी करना पड़ रहा है।

मेडिकल स्टडी में 15-20 स्टूडेंट्स पर प्रतिवर्ष एक मानव देह की जरूरत होती है। जिससे उनकी प्रेक्टिकल क्लास हो सके। ऐसे में बाड़मेर में तीसरे सत्र 2022-23 में कुल 330 मेडिकोज हो जाएंगे। इसके अलावा डिप्लोमा में भी 18 सीटों पर प्रवेश होंगे। अभी कॉलेज में दो देहदान हुए हैं। इसलिए अन्य बड़े शहरों के मेडिकल कॉलेज से मानव देह मंगवाई जाती है। स्थानीय स्तर पर देहदान के लिए जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे।

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