ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक आज प्रदेश की राजनीति में विकल्प विहीन हैं। प्रदेश की राजनीति में उनका कद अभी अजेय बना हुआ है। सिर्फ सत्तापक्ष और विपक्ष की बात नहीं है, स्थानीय भाषा से भी दूर रहने वाले इस नेता ने राज्य की जनता के दिलों में जो घर बसाया है, उसके उदाहरण दुर्लभ हैं। वह जननेता भी हैं और उन्होंने राष्ट्रहित के मुद्दों पर स्पष्ट लाइन लेकर अपनी एक राष्ट्रीय पहचान भी कायम की है।
सौम्य भी हैं और राजनीतिक रूप से सुलझे भी हुए हैं। राजनीति भी करते हैं, लेकिन विकास का एजेंडा भी नहीं छोड़ते। लोक-लुभावन फैसले भी करते हैं, लेकिन प्रगति के पथ से भी समझौता नहीं करते। यही वजह है कि वह बाकियों से काफी अलग हैं।
नवीन पटनायक ओडिशा के मुख्यमंत्री के पद पर पिछले 22 वर्षों से लगातार काबिज हैं। उनका राजनीतिक करियर भी इससे बहुत ज्यादा पुराना नहीं है। उन्होंने 1997 से ही राजनीतिक पारी शुरू की थी। लेकिन, इन 25 वर्षों में उन्होंने ओडिशा के लोगों की सियासी नब्ज ऐसे पकड़ी है कि विपक्ष उसका कोई काट नहीं ढूंढ़ पाया है।
बचपन के 'पप्पू' ने सियासत में 76 वर्षीय नवीन बाबू बनकर अपनी ऐसी प्रतिष्ठा बनाई है कि देशभर के नौसिखिए सीएम उनसे चाहे-अनचाहे राजनीतिक गुर सीखने की कोशिशों में लगे रहते हैं। ओडिशा की राजनीति में उनका कद इतना बड़ा बन गया है कि वह 'अजेय' बन चुके महसूस होते हैं। ओडिशा में अबतक उनका विकल्प बनकर कोई नहीं उभर पाया है।