MP का सबसे बड़ा आंखफोड़वा कांड

Update: 2022-02-24 06:58 GMT

साल 2015, स्थान बड़वानी... यहां लगे मोतियाबिंद ऑपरेशन शिविर में 62 लाेगाें की आंखाें की रोशनी चली गई थी। अब इन लोगों को अन्य बीमारियों ने भी घेर लिया है। किसी के हाथ पैर काम नहीं कर रहे हैं, तो किसी को ट्यूमर हो गया है। हाल ये है कि ये लोग अब अस्पताल जाने से भी डरने लगे हैं। हालांकि, शासन इनको पेंशन के नाम पर 5 हजार रुपए जरूर दे रहा है, लेकिन इलाज के नाम पर मदद नहीं की गई। बड़वानी और धार जिले के रहने वाले कुछ लोगों के हाल जानने पहुंचे तो जो दर्द सामने आया, उसे सुनकर आपकी आंखें भर आएंगी। दो उदाहरणों से समझिए, आंखों की रोशनी जाने के बाद कैसी हो गई है इन लोगों की जिंदगी।

ये हैं दो उदाहरण


1. अपने हाथ से खाना तक नहीं खा पा रहे

नाम: सीताराम, गांव-ऊपरी फल्या ऑपरेशन के बाद एक आंख की रोशनी गंवा चुके सीताराम घर के आंगन में रखी खटिया में बैठे धूप सेंक रहे थे। वे अब उठ-बैठ भी नहीं पाते हैं, क्योंकि उनका एक हाथ और पैर पूरी तरह से काम नहीं करता है। उनके बेटे लक्ष्मण बताते हैं कि ऑपरेशन के बाद पहले आंखों की रोशनी चली गई। फिर कुछ महीने बाद से उनका दायां हाथ और पैर ने भी काम करना बंद कर दिया। उसमें कंपकंपी रहती है, वे अपने हाथ से खाना भी मुंह में नहीं डाल पाते हैं। बेटा या बहू ही उन्हें खिलाते-पिलाते हैं। शासन की तरफ से उन्हें इंदौर के अस्पताल में इलाज कराने ले गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। शासन से दो लाख रुपए मिले थे, उसमें से डेढ़ लाख से ज्यादा इलाज में ही खर्च कर दिया।

2. हाथ में लटक रहा ट्यूमर, अस्पताल जाने से लगता है डर

नाम: कालू, गांव-पहाड़ी एरिया तांगड़ा 63 साल के कालू हमें नहाते हुए मिले। एक आंख की रोशनी जाने के बाद उनके उल्टे हाथ में दो-तीन किलो का ट्यूमर लटक रहा था। वे बताते हैं कि ऑपरेशन के बाद यह भी हो गया। पहले बाजू में छोटा सी गठान थी, लेकिन वह आंखों की रोशनी जाने के बाद बहुत तेजी से बढ़ी। उनके बड़े बेटे लखमन ने बताया कि अब पिताजी इलाज इसलिए नहीं करा हैं क्योंकि उन्हें डर है कि पहले ऑपरेशन कराया तो आंखों की रोशनी चली गई, अब हाथ का इलाज कराएंगे तो कहीं हाथ ना चला जाए। इसे लेकर वे अस्पताल जाने से डरते हैं। शासन 5 हजार रुपए पेंशन देता है पर इलाज के नाम पर कुछ नहीं हो पाया। 62 लोगों के मोतियाबिंद ऑपरेशन करने वाले डॉ. आरएस पलोड़ ने कहा कि मुझे बलि का बकरा बना दिया गया। पहले मुझे सस्पेंड किया, फिर सहायक व स्टाफ नर्स को निलंबित किया था। मैंने 40 हजार मोतियाबिंद के ऑपरेशन किए हैं, सभी सरकारी अस्पताल में ही हुए हैं। ऑपरेशन थिएटर के स्टरलाइजेशन और दवाई की गुणवत्ता को लेकर वहां की जिम्मेदारी संभालने वाले स्टाफ, नर्स और सीएमएचओ भी जिम्मेदार हैं। मैं हर महीने दो-चार बार मोतियाबिंद के कैंप लगाता था। पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। जो अन्य मेडिकल स्टाफ था, उन्हें तो दोबारा बहाल कर नौकरी पर रख लिया है। दवाई खरीदी पर जांच क्यों नहीं की गई। बड़वानी के जिला अस्पताल में 16 नवंबर से 23 नवंबर 2015 के दौरान नेत्र स्पेशलिस्ट डॉ. आरएस पलोड़ के साथ नेत्र सहायक प्रदीप चौकसे, ओटी इंचार्ज लीला वर्मा और स्टाफ नर्स माया चौहान, विनीता चौकसे और शबाना मंसूरी की टीम ने 86 लोगों का मोतियाबिंद ऑपरेशन किया था। 2-3 दिन बाद ही अधिकतर मरीजों की आंखों में इंफेक्शन और परेशानी शुरू हो गई। शुरुआत में 67 लोगों के आंखों की रोशनी जाने की शिकायत हुई। जांच में 43 लोगों की आंखों में संक्रमण मिला। पिछले साढ़े छह साल से 62 मरीज जो इस ऑपरेशन से आंखों की रोशनी खो चुके हैं, उन्हें शासन की तरफ से हर माह 5000 रुपए पेंशन दी जा रही है।

पूरे मामले की जांच के लिए संयुक्त संचालक डॉ. शरदचंद्र पंडित, इंदौर मेडिकल कॉलेज नेत्र विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रीति रावत, डॉ. विवेक मिश्रा, डॉ. मधुसूदन मंडलोई, डॉ. प्रदीप गोयल, डॉ. ईश्वर पाटीदार, डॉ. विनोद बर्डे, सीएमएचओ बड़वानी डॉ. रजनी डावर और जिला अस्पताल बड़वानी सिविल सर्जन डॉ. एएस विश्नार की टीम बनाई गई। रिपोर्ट में पाया गया कि ओपीडी में रोगियों के ऑपरेशन के पहले जांच नहीं की गई। साथ ही ओटी में साफ-सफाई नहीं थी, जिससे संक्रमण फैला। बड़वानी की सीएमएचओ डॉ. अनिता सिंगारे का कहना है कि मरीजों की इंदौर भिजवाकर जांच कराई गई थी। उस ऑपरेशन के बाद अब मरीजों को और क्या इंफेक्शन या बीमारी हुई, इसकी जानकारी नहीं है। बड़वानी में इस घटना के बाद मोतियाबिंद का ऑपरेशन अब इंदौर भेजकर ही करवाते हैं। यहां नेत्र विशेषज्ञ नहीं है। लोग तो आ रहे हैं, लेकिन जिले में अब कैंप नहीं लग रहा है।

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