भारत के मणिपुर में हैं ये दो हथियारबंद गिरोह, चिन नेशनल आर्मी के ऊपर हमलों से इनकार

Update: 2022-06-21 13:22 GMT

म्यांमार के उत्तरी हिस्से में चिन बागियों की बढ़ी गतिविधियों के कारण हिंसा की घटनाएं हाल में तेजी से बढ़ी हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक ये बागी न सिर्फ म्यांमार सेना को निशाना बना रहे हैं, बल्कि उनकी सीमा पार भारत स्थित कुछ उग्रवादी समूहों से भी लड़ाई चल रही है।

चिन को म्यांमार का सबसे गरीब प्रांत माना जाता है। बागियों की बढ़ी गतिविधियों के कारण म्यांमार की सेना ने भी वहां हमले तेज कर दिए हैं। सेना की तरफ से छापा मारने और हवाई बमबारी की कई घटनाएं हाल में हुई हैं। वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक सेना के हमलों के कारण कई गांव पूरी तरह से तबाह हो गए हैं।

भारत के मणिपुर में हैं ये दो हथियारबंद गिरोह

इस प्रांत में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और जोमी रिवोल्यूशनरी लिबरेशन आर्मी (जेडआरए) नाम के दो हथियारबंद गिरोह भी सक्रिय हैं। बताया जाता है कि इन दोनों गुटों का ठिकाना सीमा पार भारत के मणिपुर राज्य में है। कुछ खबरों में बताया गया है कि इन दोनों गुटों ने चिन विद्रोहियों पर हमला करने में म्यांमार की सेना की मदद की है।

चिन प्रांत में 31 कबीलाई समूह रहते हैं। इन समूहों के बीच पहले भी वर्चस्व की होड़ रही है। चिन नेशनल आर्मी नाम का उग्रवादी गुट यहां 1988 से सक्रिय है। यह गुट चिन प्रांत को एक आजाद देश बनाना चाहता है। हाल में उसने पीएलए और जेडआरए के खिलाफ भी युद्ध का एलान कर दिया।

पीएलए का मुख्य आधार मणिपुर के मितई समुदाय के बीच है। जबकि जोमी समुदाय का संबंध चिन कबीलों से है। बताया जाता है कि जेडआरए का गठन 2013 में हुआ था, लेकिन इसकी गतिविधियां हाल में ज्यादा बढ़ी हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक पीएलए और जेडआरए की गतिविधियां भारत के लिए भी चिंता का कारण बन सकती हैं।

चिन नेशनल आर्मी के ऊपर हमलों से इनकार

म्यांमार में भारत के राजदूत रह चुके गौतम मुखोपाध्याय ने वेबसाइट निक्कई एशिया से कहा कि पिछले साल हुए सैनिक तख्ता पलट के बाद विभिन्न उग्रवादी गुटों में आपसी लड़ाई सिर्फ चिन प्रांत में ही तेज नहीं हुई है। बल्कि ऐसा म्यांमार के शान प्रांत में भी हुआ है। विभिन्न गुटों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास इतना गहरा है कि वे सैनिक शासन खत्म कराने के मकसद से बनी नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (एनयूजी) के साथ भी सहयोग नहीं कर रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक एनयूजी ने भी अपनी तरफ से यह भरोसा जगाने की कोई खास कोशिश नहीं की है कि वह म्यांमार में सैनिक शासन विरोधी सभी नस्लीय समूहों की नुमांदगी करती है।

पीएलए और जेडआरए के प्रवक्ताओं ने निक्कई एशिया से बातचीत में ये स्वीकार किया कि म्यांमार के सैनिक शासन के साथ कुछ मुद्दों पर उनकी फिलहाल सहमति बन गई है। लेकिन उन्होंने इस बात का खंडन किया कि वे चिन नेशनल आर्मी के ऊपर हमला करने में म्यांमार की सेना की मदद कर रहे हैं। वैसे इस इलाके में हिंसा बढ़ने की खबरें रोजमर्रा के स्तर पर आ रही हैं।

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