जिन्हें कल तक खुद चोर पुकार रहे थे आज उन्हें ही तिजोरी की चाबी सौंपना को तैयार
अजमेर। राजनीति के किसी छात्र को एक ही बार में यदि नीति और राजनीति का अन्तर समझना हो तो उसे निस्संदेह महाराष्ट्र की ताजा राजनीति का अध्ययन करना चाहिए जहां पिछले चार साल के दौरान राजनीतिक दांव और पेंच की लपेट में आकर तीन मुख्यमंत्री अब तक जमीन सूंघ चुके हैं और चौथे उलटी गिनती की जद में हैं। भाई-भतीजावाद की कहावत यहां बाप-बेटीवाद की सीमा तक जा पहुंची है तो देश के चौकीदार, आज उन लोगों को, तिजोरी की चाबियां संभलाने के लिए बेजार दिखाई दे रहे हैं जिन्हें कल तक ये खुद चोर कह कर पुकार रहे थे।
भाजपाई झूले में बैठ कर करीब एक साल से मोजी खा रहे मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने जबसे राजस्थान की रियासत के एक पूर्व महाराज भैरोसिंह जी की कहानी सुनी है वे किसी रात, एक करवट सो नहीं पाए हैं। कहते हैं भैरोसिंह जी जब बग्घी पर बैठकर शहर भ्रमण को निकलते थे, रास्ते में कोई भी परिचित दिखते ही उसे जोर देकर बग्घी में आगे अपने साथ बिठा लेते और कुछ कदम बाद फिर कोई नया परिचित दिख जाता तो उसे आगे बिठा कर बिना यह देखे कि पीछे जगह भी है या नहीं, आगे वाले को पिछली सीट पर जाने को कह देते थे।
भतीजे अजीत पंवार को काका और राकांपा के आका शरद पंवार के खिलाफ थपकी, देकर अपने पाले में ले आई भाजपा के लच्छन देख कर शिंदे को बार बार वो दिन याद आ रहा है जब ठीक इसी तरह उनसे भी इसी भाजपा ने, उद्धव ठाकरे का खूंटा तुड़वाकर अपनी बग्घी की अगली सीट पर लादा था। शिंदे और उनकी सेना की नींद यह सोच सोच कर गायब है कि बग्घी की पिछली सीट पर भी अब अगर जगह नहीं मिली तो जायेंगे कहां?
इधर काका शरद पंवार को ठेंगा दिखा कर भाजपाई बग्घी की अगली सीट पर ताजा-ताजा सवार हुए अजीत दादा के दर्द का सिद्धान्त भी बेतुक नहीं है। अजीत मानते हें कि बेशक वे जो कुछ थे वह शरद पंवार की पूजा पाठ से मिले पुण्य प्रताप से थे। मगर लम्बे इंतजार के बाद जब इस पुण्य का फल खाने का वक्त आया तो चाचा ने भतीजावाद छोड़ कर बेटीवाद अपना लिया और बेटी सुप्रिया सुले को उत्तराधिकार की पगड़ी पहना दी। ऐसे समय में भाजपा का न्यौता उन्हें चुपड़ी और दो-दो की तरह नजर आया। एक तरफ भ्रष्टाचार की जांच से क्लीनचिट और दूसरी तरफ मंत्री पद का जैकपॉट। उम्मीद तो उन्हें इस बार मुख्यमंत्री पद का जैकपॉट लगने की थी मगर उप मुख्यमंत्री पद के साथ-साथ अपने पसंदीदा वित्त मंत्रालय की लॉलीपॉप पाने के लिए उन्हें जिस तरह दिल्ली से मुम्बई तक रेलमपेल करनी पड़ी उसे देखते हुए जो मिला उसी में वे अपनी पौ बारह मान रहे हैं। मक्खन की हंडिया पर कुंडली मारकर बैठे एकनाथ शिंदे दरअसल इन अनचाही मख्खियों को मक्खन तो क्या, खट्टी छाछ भी परोसना नहीं चाहते थे। मगर भाजपा हाईकमान की डेढ़ी भौं के आगे इन्हें आखिर अंटी ढीली करनी ही पड़ी।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है, ताजा खेला, खेल कर बेशक इसने एक पत्थर से तीन बटेर मारने का रिकॉर्ड अपने नाम कराया है। सबसे पहले तो भाजपा ने ऐसा करके लम्बे समय से भाव खा रहे शिंदे साहब को जता दिया है कि महाराष्ट्र में सत्ता की गाड़ी चलाने के लिए वह उनके धक्के की मोहताज नहीं है। दूसरा, उद्धव ठाकरे के बाद इस राज्य में भाजपा की आंख की किरकिरी थे शरद पंवार। पंवार की लाठी छीनकर भाजपा ने उनकी कमर पर ऐसा टहोका दिया है कि अब शायद लम्बे समय तक उन्हे सीधा खड़े होने में दिक्कत आए। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण यह कि भाजपा ने राकांपा के तखत के पाये अपने पलंग में लगा कर अपनी नींद सुनिश्चित कर ली है।
मई में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा दिए गए इस आदेश के बाद से भाजपा रातों को करवटें बदल रही थीं, जिसकी पालना में स्पीकर राहुल नार्वेकर को 11 अगस्त से पहले शिवसेना से टूटे विधायकों पर फैसला देना था। अब अगर शिवसेना के टूटे हुए विधायकों की योग्यता को लेकर कोई ऊंचनीच भी हो जाए तो चिंता की कोई बात नहीं है। कुल मिला कर धर्म और नैतिकता में विश्वास रखने वाली भाजपा जैसा कि हाल ही उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने कहा भी है, विधायकों को घोड़ों के भाव खरीद कर, अजीत पंवार, छगन भुजबल, अदिति तटकरे और हसन मुशरिफा सरीखे विधायकों के पीछे पहले ईडी और एसीबी दौड़ा कर और फिर उनके गले में पट्टा बांध कर धर्म का पालन ही कर रही है जिसका पुण्य इसे अगले वर्ष होने जा रहे चुनावों में जनता रूपी भगवान से मिलना तय है।