महाराष्ट्र में OBC आरक्षण: पंचायत अध्यक्ष का पद आरक्षित करने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में एक पंचायत समिति के अध्यक्ष का पद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ी आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा कि यह आरक्षण उसके द्वारा पूर्व में दिए गए एक फैसले का उल्लंघन है। यह गंभीर मामला है। वह मामले में दखल देगी।
शीर्ष कोर्ट ने पंचायत समिति के अध्यक्ष पद के ओबीसी के लिए आरक्षण की चुनाव प्रक्रिया को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने कहा कि यह साफतौर पर उसके फैसले को चोट पहुंचाने जैसा है। जस्टिस एएम खानविलकर व जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के परे जाने का प्रयास है। पीठ ने संबंधित कलेक्टर को नोटिस जारी करते हुए उनसे पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई की जाना चाहिए? यह भी कहा कि शीर्ष कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा पूर्व में दिए गए स्पष्ट फैसले के बावजूद पंचायत समिति में रिक्त पदों को भरने की चुनाव प्रक्रिया शुरू कर दी गई।
शीर्ष कोर्ट बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने पाया कि तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने इस साल मार्च में एक फैसला दिया था। उसमें अदालत ने इस तरह के आरक्षण का प्रावधान करने से पहले ट्रिपल टेस्ट के पालन का आदेश दिया था। इस साल मार्च में शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि महाराष्ट्र में संबंधित स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़े वर्गों का आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण कुल मिला कर 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता। पीठ ने याचिका पर महाराष्ट्र सरकार समेत सभी प्रतिवादियों को भी नोटिस जारी किया। मामले में आगे सुनवाई 5 जनवरी को होगी।
पिछले सप्ताह ओबीसी आरक्षण पर लगाई थी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 6 दिसंबर को महत्वपूर्ण आदेश जारी कर महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अन्य सीटों के लिये चुनाव प्रक्रिया जारी रहेगी। शीर्ष अदालत ने दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया था। पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों के संबंध में सभी संबंधित स्थानीय निकायों का चुनाव कार्यक्रम अगले आदेश तक स्थगित रहेगा।