औरंगाबाद में पुनपुन नदी घाट पर पिंडदानियों का तांता

Update: 2023-10-08 16:43 GMT
औरंगाबाद। पितृपक्ष (paternal side) के अवसर पर अपने पूर्वजों को प्रथम पिंडदान अर्पित करने के लिए इन दिनों औरंगाबाद जिले के सिरिस स्थित (Located at Siris in Aurangabad district) पुनपुन नदी घाट पर पिंडदानियों का तांता लगा हुआ है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुनपुन नदी को पितृ तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में स्वीकार किया गया है। परंपरा के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पितरों के मोक्ष दिलाने हेतु गया में पिंडदान के पूर्व पितृ-तर्पण की प्रथम वेदी के रूप में मशहूर पुनपुन नदी में प्रथम पिण्डदान का विधान है।
पुराणों में वर्णित ‘आदि गंगा पुनः पुनः’ कहकर पुनपुन को आदि गंगा के रूप में महिमामंडित किया गया है और इसकी महत्ता सर्वविदित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थल पर गयासुर राक्षस का चरण है। गयासुर राक्षस को वरदान प्राप्त था कि सर्वप्रथम उसके चरण की पूजा होगी। उसके बाद ही गया में पितरों को पिंडदान होगा। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर पिंडदान करने के बाद ही गया में किया गया पिंडदान पितरों को स्वीकार्य होता है।
सिरिस स्थित पुनपुन नदी के पिंडदान की प्रथम वेदी पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तरांचल, झारखंड, बिहार, राजस्थान आदि प्रान्तों के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से अब तक एक लाख से अधिक श्रद्धालु यहां पहुंच चुके हैं और अपने पितरों को पिंडदान अर्पित कर चुके हैं।
पौराणिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण होने के बावजूद इस स्थल पर राज्य सरकार और जिला प्रशासन द्वारा बिजली, पानी, सफाई, स्वास्थ्य, सुरक्षा, धर्मशाला आदि की कोई खास व्यवस्था नहीं की गयी है, जिससे सिरिस पुनपुन घाट पहंुचने वाले श्रद्धालुओं को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद यह देश के करोड़ों श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था का केन्द्र बना हुआ है।बहरहाल, आवश्यक सुविधाओं की कमी का दंश झेल रहे सिरिस पुनपुन नदी घाट के विकास की जरूरत महसूस की जा रही है। पौराणिक महत्व वाले इस स्थल के विकास से न केवल श्रद्धालुओं को सुविधा होगी, बल्कि सरकारी राजस्व में भी भारी वृद्धि होगी ।
पुजारी कमलेश मिश्रा ने बताया कि मान्यताओं के अनुसार इस पुनपुन घाट पर ही भगवान श्रीराम ने माता जानकी के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहला पिंड का तर्पण किया थे, इसलिए इसे पिंड दान का प्रथम द्वार कहा जाता ह । इसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर पूरे विधि-विधान से तर्पण किया गया था । प्राचीन काल से पहले पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण करने के बाद फिर गया के 52 वेदी पर पिंडदान तर्पण की परंपरा है तभी पितृपक्ष में पिंडदान को पूरा तर्पण संपन्न माना जाता है । यहां वर्ष भर में तीन बार पिंडदान किया जाता है लेकिन यह आश्विन माह वाला पिंड दान का विशेष महत्व है।
छत्तीसगढ़ के रीवा जिले के ऋषभ तिवारी ने बताया कि मगध का यह धरती काफी पवित्र हैं, यहां पिंड तर्पण करने से पितरों को मोक्ष और उद्धार होता हैं. इस पुनपुन नदी को पिंडदान का प्रवेश द्वारा कहा जाता है । यहां के बाद गया फल्गु में पिंड तर्पण करने की परंपरा है ।छत्तीसगढ़ के रीवा ज़िले के रमेश कुमार मिश्रा ने बताया कि शास्त्रों एवं मान्यताओं के अनुसार अपने पितरों के उद्धार के लिए हम यहां पिंड दान करने आएं हैं, ताकि पितृ ऋण से मुक्ति मिल सके और हमारे पूर्वजों को शांति मिल सके। इसके पहले हमने इलाहाबाद और बनारस में पिंड तर्पण किया। उत्तर प्रदेश के उरई निवासी सूर्य प्रताप सिंह ने बताया कि मरणोपरांत पूर्वजों के उद्धार के लिए हम यहां पुनपुन नदी में पिंडदान करने आए हैं, जिससे हमारे पितरों को शांति मिल सके और पितृ दोष से मुक्ति मिल सके।
Tags:    

Similar News

-->