मालूम हो कि शहर के सभी घरों में पाइपलाइन के जरिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने, सभी घरों में सीवरेज और सेप्टेज का 100 फीसद कवरेज प्रदान करने को डेढ़ दशक पहले सरकार ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन शुरू किया था। इसे बाद में अमृत मिशन 1.0 नाम दिया गया। साल-2016 में अमृत मिशन 1.0 अंतर्गत उज्जैन में काम करने को 700 करोड़ रुपये की परियोजना बनी। सरकार ने बजट न होने पर परियोजना को दो चरणों में पूरी करने का निर्णय लिया। पहले चरण में उज्जैन के 54 में से 35 वार्डों में भूमिगत सीवरेज पाइपलाइन बिछाने और सुरासा में 92 एमएलडी (मिलियन लीटर पर डे) क्षमता का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने को 402 करोड़ रुपये स्वीकृत किए।
परियोजना धरातल पर उतारने की जिम्मेदारी नगर निगम ने टाटा प्रोजेक्ट कंपनी को दी। 7 नवंबर 2017 को कार्य आदेश जारी किया। अनुबंध हुआ कि कंपनी दो साल में प्रोजेक्ट पूरा करके देगी, मगर ऐसा नहीं हुआ। विभिन्ना कारणों से प्रोजेक्ट पिछड़ता चला गया। कंपनी को शहर में अभी भी 210 किलोमीटर पाइपलाइन बिछाना है। जिस गति से काम हो रहा है, उससे ये प्रोजेक्ट अगले तीन वर्षों में भी पूरा होना मुश्किल दिखाई पड़ता है। हां, निगम 35 करोड़ रुपये से पानी की 9 उच्च स्तरीय टंकियों का निर्माण अवश्य पूरा करवा लिया है।
इन कार्यों के लिए इतना रुपया मंजूर
वाटर सप्लाई पाइपलाइन बिछाने को : 14 करोड़ रुपये
सीवरेज कवरेज पाइपलाइन : 293 करोड़ रुपये
मंछामन और पुरुषोत्तम सागर उन्नायन : 5 करोड़ रुपये
482 करोड़ रुपये मांगे थे
नगर निगम ने अमृत मिशन 2.0 शुरू करने के लिए केंद्र से 482 करोड़ रुपये मांगे थे। मगर वित्तीय स्थितियों को ध्यान में रख 170 करोड़ रुपये की कटौती कर दी गई। भेजे गए प्रस्ताव में पुराने पंपों, पाइपलाइनों और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की मरम्मत कराने, 11 अवैध कालोनियों में वाटर सप्लाई पाइपलाइन बिछाने भी जिक्र था। 25 करोड़ रुपये सप्त सागरों के विकास के लिए, 10 करोड़ रुपये हरित क्षेत्र विकास के लिए भी जोड़े थे। यह राशि सहित अन्य प्रस्तावित मदों को हटा दिया गया है।
ये है मिशन का उद्देश्य
अमृत मिशन का उद्देश्य हर नागरिक की पानी की जरूरतों को पूरा करना, जल स्रोतों को फिर से जीवंत करना, उपचारित अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग करने के लिए पानी की एक चक्रीय अर्थव्यवस्था बनाना है। कहा गया है कि भविष्य में जल के समान वितरण, अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग का मानचित्र से पता लगाकर शहरों में पेयजल सर्वेक्षण किया जाएगा। दावा यह भी है कि मिशन पूरा होने पर शिप्रा नदी का पानी बारह महीने स्वच्छ रहेगा।