ग्रामीण पकड़ रहे पलायन की राह, लकड़ी के चूल्हे पर बनता है खाना

Update: 2023-07-05 11:37 GMT

भोपाल: धानसभा चुनाव के मद्दनेजर साधन, सुविधाओं और जिंदगी की सुगमता के संबंध में आमजन का मानस समझने के लिए दमोह जिले के हटा और जबेरा विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर पलायन की स्थिति को गंभीर पाया. यह भी समझ आया कि दोनों क्षेत्रों के लोग पानी-बिजली और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए मोहताज महसूस कर रहे हैं और तकलीफ में हैं.

दौरे की शुरुआत हटा विधानसभा क्षेत्र के घाट पिपरिया ग्राम पंचायत से सटे एक छोटे से गांव पंडा से हुई. चाय की चुस्की ले रहे नारायण सिंह से बात शुरू की तो वे बोले, 'गांव में काम नहीं मिलता. रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं. गांव से लोग बाहर मजदूरी करने जाते हैं. इसलिए गांव खाली से दिखते हैं.’ पास में ही कनभजिया गांव के पतिराम सिंह का कहना था, 'गांव में सड़क नहीं है. बारिश में हर साल हम लोग घरों में कैद हो जाते हैं.’ थोड़ा सा आगे चलकर मुहली पंचायत के विकास गांव को टटोला, तो वहां पप्पू वर्मा नाम के युवक ने कहा, 'गांव का नाम भले ही विकास हो, पर यहां पर कोई सुविधा नहीं है. रास्ते में चीलघाट, कालाकोट, मुहास के ग्रामीणों ने भी बेरोजगारी, बिजली-पानी की समस्याएं गिनाईं.

जबेरा विधानसभा क्षेत्र में दाखिल हुए तो डूंगर ग्राम पंचायत के ग्रामीण पुरुषोत्तम विश्वकर्मा से सबसे पहला साक्षात्कार हुआ. इसमें उज्ज्वला योजना की बात निकली तो वे मुस्कुराते हुए बोले, मुफ्त गैस कनेक्शन देने से क्या होता है? सिलेंडर भी तो चाहिए न. 1125 रुपए में सिलेंडर मिलता है. इतना पैसा कहां से लाएं और कितनी बार लाएं? इसलिए जंगल से लकड़ियां बीनकर चूल्हा जलाते हैं.’ कुम्हारी से 18 किमी दूर जबेरा विधानसभा क्षेत्र के सगरा गांव के राजेंद्र यादव ने बिजली की किल्लत बताई. बोले, गांव में बिजली आ जाए यह किस्मत की बात होती है. डीपी दूर लगी है और केबल नहीं डली. कई दिन से अंधेरे में ग्रामीण रह रहे हैं.’ रीछई के मूरत

आदिवासी का कहना था, 'पीने के पानी के लिए पाइपलाइन बिछाई गई है, लेकिन पानी बिजली आने पर ही मिल पाता है. गांव की आधे से ज्यादा आबादी दूर से पानी भरने को मजबूर है. माला बाम्होरी, बनवार, रोंड, सिमरी, घाट बम्होरी, चिलौद गांव के लोगों ने गांव में रोजगार के अवसर नहीं होने की बात कही.

उद्योग धंधे नहीं, बैंक तक नहीं खुला

इसी विधानसभा क्षेत्र के चार हजार वोटर वाली कुम्हारी ग्राम पंचायत में चाय की दुकान चलाने वाले रूप किशोर का कहना था, 'यहां कोई उद्योग धंधा नहीं है. पंचायत में बैंक तक नहीं है. लोगों को पटेरा जाना पड़ता है.’ कालाकोट के बद्री यादव बोले, शासन द्वारा दिया जाने वाला बीज आसानी से नहीं मिलता. कुम्हारी में डॉक्टर नहीं है. सीएम हेल्पलाइन में शिकायत कर चुके, लेकिन डॉक्टर नहीं मिले.’

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