गांव के युवकों का काम भी वर्क फ्रॉम होम, कमा रहे लाखों

Update: 2022-12-21 10:09 GMT

इंदौर न्यूज़: शादी और ठंड के मौसम में बड़े शोरूम और बाजारों में मिल रहे फैशनेबल जैकेट शहर से सत्तर किमी दूर गांव में रहने वाले युवा तैयार कर रहे हैं. इन्हें रोजगार के लिए शहर का रुख नहीं करना पड़ा. कोट- जैकेट की सिलाई के लिए बड़े लोग छोटे गांव का रुख कर रहे हैं. नेमावर रोड पर चापड़ा से उन्नीस किमी दूर कजलिवन गांव है. अस्सी फीसद युवा कोट- जैकेट की सिलाई का काम करते हैं. सिलाई से रोजगार ही नहीं पहचान भी मिल गई. हैं. जैकेट के शौकिन दूर-दराज से आते हैं. इंदौर ही नहीं आसपास के जिले के कई शो रूम यही से कोट- जैकेट तैयार करवाते हैं.

एक दशक से लोधी समाज के लोग यहीं काम कर रहे हैं. नई पीढ़ी बचपन से जैकेट बनाना देखती आई है. बदलते दौर का फैशन ऑनलाइन देख तैयार कर देते हैं. कोई कहीं सीखने नहीं गया. अपने लोगों को करता देख सीखते गए. सिलाई का काम करने वाले अभिषेक लोधी बताते हैं कि हम खेत पर ही सिलाई का काम करते हैं. काम इतना है कि पढ़ने के लिए समय ही नहीं मिल पाता तो आधे में ही पढ़ाई छोड़ना पड़ी. अभिषेक बताते हैं कि पढ़ लिखकर भी तो काम ही करना है. परिवार को पालना है. जब घर बैठे ही काम मिल रहा है तो कहीं और जाने की क्या जरूरत है. गांव के ज्यादातर युवाओं के पास यही काम है.

अनार सिंह लोधी बताते हैं कि जैकेट का काम पुराने लोगों ने शुरू किया था. वे बाहर से सीख कर आए थे फिर गांव के युवाओं को तैयार किया और यह सिलसिला बढ़ता गया. अब हर घर यही काम हो रहा है. पिछले महीने भोपाल के बड़े नेता के यहां हुए शादी के सारे जैकेट यहीं तैयार हुए थे. छावनी इंदौर से जैकेट बनवाने पहुंचे पीयूष गुप्ता बताते हैं कि वे दूसरी बार यहां आए हैं. कोट- जैकेट की सिलाई परफेक्ट है और दाम भी कम है. यहां के युवाओं को जो डिजाइन बताओ तुरंत तैयार कर देते हैं जिसके लिए शहर में बड़े और महंगे डिजाइनर के यहां चक्कर लगाना पड़ते हैं. उन तक हर किसी की पहुंच भी नहीं होती है लेकिन इस गांव के लड़के काम भी अच्छा करते हैं और पैसा भी कम लेते हैं.

साथ में खेती भी संभाल लेते हैं युवा: गांव के युवा बताते हैं कि हमारे लिए तो बरसों से यही काम वर्क फ्रॉम होम बना हुआ है. खेती बाड़ी भी हो जाती है और काम भी कर लेते हैं. आजकल यह ट्रेंड बहुत सी जगह पर देखा जा रहा है. इससे युवाओं को इनकम में फायदा भी हो रहा है और वे शहर के खर्च से भी बच रहे हैं.

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