इंदौर न्यूज़: कान्ह नदी को राज्य सरकार ने प्रदूषित घोषित कर दिया है. यह और बात है कि नदी सफाई के नाम पर नगर निगम हर साल करोड़ों रुपए अलग-अलग मदों में खर्च करती रही है. 10 साल से औसतन डेढ़ करोड़ रुपए प्रतिवर्ष नदी सफाई पर खर्च होते आ रहे हैं. बीते पांच साल में ही निगम ने नदी से गाद निकालने का बजट 9.50 करोड़ रुपए रखा है. निगम दावा करता है कि नदी में सीवरेज नहीं मिल रहा है. सवाल यह है कि इसके बाद भी नदी में लगातार गाद क्यों आ रही है? नदी सफाई के नाम पर निगम ने बीते साल बजट में तीन करोड़ रुपए का प्रावधान किया था. इसमें से कुछ लाख रुपए ही खर्च हुए हैं. वहीं, हर साल औसतन डेढ़ करोड़ रुपए नदी सफाई पर खर्च किए गए हैं. इसके बाद भी नदी में गाद आती रहती है. गाद की वजह बरसात में आसपास की मिट्टी का कटाव होना और नदी में मिलने वाले नालों और सीवरेज लाइनों से आने वाली गंदगी है. ये गंदगी गाद में बदल जाती है. कान्ह नदी का बड़ा हिस्सा शहर में है और इसके आसपास निर्माण हो चुके हैं. ऐसे में नदी में मिट्टी का कटाव तो काफी कम होता है, लेकिन गंदगी जरूर नदी में आती है. कान्ह नदी में मौजूद गाद निगम के नदी में सीवरेज नहीं मिलने के दावों की पोल खोल रही है.
सफाई का तरीका पैसे बर्बाद करने वाला: कान्ह और साबरमती नदी के जीर्णोद्धार पर मास्टर डिग्री करने वाली अर्शिया कुरैशी का कहना है कि इंदौर में नदी सफाई का जो तरीका अपनाया जा रहा है, वह केवल पैसों की बर्बादी है. लगभग सूख चुकी साबरमती नदी को पुनर्जीवित करने और उसमें नर्मदा का पानी मिलाने से पहले नदी से पूरी गाद साफ की गई थी. गाद हुई तो वह नदी को फिर गंदा करेगी. इंदौर में नदी सफाई का एक ही तरीका है कि नदी में मिलने वाले सीवरेज को रोका जाए. नदी में मिलने वाली सहायक नदियों (नालों) के नदी में मिलने के पहले उन पर 6 से 8 फीट ऊंचे स्टॉपडेम बनाए जाएं, ताकि गाद वहीं रूक जाए. नदी के स्टॉपडेम का उपयोग भी गाद रोकने में किया जा सकता है.
गाद निकालने में लगाई राशि का ब्यौरा:
साल खर्च राशि
2018-19 1.05 करोड़
2019-20 77 लाख
2020-21 150 करोड़ (बजट में प्रावधान)
2021-22 3 करोड़ (बजट में प्रावधान)
2022-23 3 करोड़ (बजट में प्रावधान)