मध्य प्रदेश MP : हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि कानून बनाने वालों को यह समझने में कई साल लग गए कि तीन तलाक असंवैधानिक है और समाज के लिए बुरा है। अब हमें देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की जरूरत को समझना चाहिए। न्यायमूर्ति वर्मा ने पिछले हफ्ते भारतीय दंड संहिता, मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 और दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत आरोपों का सामना कर रही मुंबई की दो महिलाओं की याचिका पर यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति अनिल वर्मा की सिंगल बेंच ने कहा कि समाज में कई अन्य अपमानजनक, कट्टरपंथी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़िवादी प्रथाएं प्रचलित हैं। इन प्रथाओं को आस्था और विश्वास के नाम पर छिपाया जाता है। हालांकि संविधान में पहले से ही अनुच्छेद 44 में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की वकालत की गई है, फिर इसे केवल कागजों पर नहीं, वरन हकीकत में बदलने की जरूरत है। न्यायमूर्ति अनिल वर्मा की अदालत ने यह भी कहा कि बेहतर ढंग से तैयार किया गया समान नागरिक संहिता ऐसी अंधविश्वासी और बुरी प्रथाओं पर लगाम लगा सकता है। यह राष्ट्र की अखंडता को भी मजबूत करेगा। यह मामला मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 से संबंधित है। तीन तलाक एक गंभीर मुद्दा है। मुंबई की मां-बेटी आलिया और फराद सैय्यद की याचिका का निपटारा करते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की। अपनी याचिका में दोनों महिलाओं ने आईपीसी, दहेज अधिनियम और मुस्लिम महिला अधिनियम के तहत उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी। साथ ही Maharashtra महाराष्ट्र की सीमा से सटे बड़वानी जिले के राजपुर में न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) के समक्ष लंबित परिणामी कार्यवाही को भी रद्द करने की मांग की थी।
सलमा ने अपनी सास Aliya आलिया, ननद फराद और पति फैजान के खिलाफ दो लाख रुपये दहेज के लिए कथित तौर पर शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई थी। सलमा ने फैजान पर तीन तलाक देने का आरोप लगाया है। सलमा कहना था कि उसका निकाह 15 अप्रैल 2019 को इस्लामिक के अनुसार हुआ था। सलमा की शिकायत पर आलिया, फराद और फैजान पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए और 323/34, दहेज निषेध अधिनियम की धारा तीन/चार और मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम की धारा चार के तहत मामला दर्ज किया गया। याचिकाकर्ताओं के वकील ने दावा किया कि चूंकि कथित मामला मुंबई के घाटकोपर इलाके का है और इसलिए एमपी के राजपुर पुलिस थान को उक्त प्राथमिकी दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कानून में है कि सीआरपीसी की धारा-177 के सामान्य नियम के तहत दूसरे क्षेत्र की अदालत अपराध का संज्ञान ले सकती है। इसके अलावा यदि एक इलाके में किया गया अपराध दूसरे इलाके में दोहराया जाता है तो दूसरे स्थान की अदालतें मामले की सुनवाई करने के लिए सक्षम हैं। अदालत ने कहा कि 2019 के अधिनियम की धारा तीन ने तीन तलाक को अमान्य और अवैध घोषित कर दिया है, जबकि धारा चार में तीन साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है। रीति-रिवाजों