Mandsaur: आठ वर्षीय मासूम से सामूहिक दुष्कर्म के आरोपितों की फांसी की सजा रद्द
Mandsaur मंदसौर: मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में 26 जून 2018 को आठ वर्षीय मासूम से सामूहिक दुष्कर्म की बहुचर्चित घटना के दोनों आरोपितों को फांसी की सजा रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने यह मामला फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजा है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रमनाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने आरोपितों आसिफ खां और इरफान मेव की अपील पर सजा के परीक्षण के बाद कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सजा सुनाते समय कई तथ्यों पर गौर नहीं किया है।
जल्दबाजी में सुनाया फैसला
वैज्ञानिक विशेषज्ञों की गवाही और परीक्षण किए बगैर सिर्फ डीएनए रिपोर्ट पर भरोसा करके सजा सुनाने से न सिर्फ न्याय की विफलता हुई है, बल्कि इससे मुकदमे की प्रक्रिया भी प्रभावित हुई।
आरोपितों को अपना बचाव करने का पर्याप्त मौका दिए बगैर ट्रायल कोर्ट द्वारा दो माह से भी कम समय में मुकदमे की सुनवाई पूरी कर ली गई। इससे जाहिर होता कि मुकदमे की प्रक्रिया में जल्दबाजी दिखाई गई। चूंकि इस मामले में मौत की सजा शामिल है, इसलिए आरोपितों को बचाव करने का उचित मौका देना बहुत जरूरी है।।
डीएनए रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम को बुलाया जाएगा
पीठ ने शनिवार को अपने आदेश में कहा है कि अब इस प्रकरण में ट्रायल कोर्ट द्वारा वैज्ञानिक विशेषज्ञों की मदद लेकर चार माह में फिर से सुनवाई की जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिए हैं कि डीएनए रिपोर्ट तैयार करने और इसे जारी करने वाले वैज्ञानिक विशेषज्ञों को संपूर्ण सहायक सामग्री के साथ कोर्ट में गवाही के लिए बुलाया जाए।
सभी पक्षों को अवसर मिले
संबंधित वैज्ञानिक, विशेषज्ञों को गवाही देने और उनसे जिरह के लिए अभियोजन और बचाव पक्ष दोनों को उचित अवसर दिया जाए। यदि आरोपितों की पसंद का वकील नहीं मिलता है तो पर्याप्त अनुभव रखने वाले बचाव पक्ष के वकील को अभियुक्तों का बचाव करने और नए सिरे से मुकदमे में शामिल होने के लिए नियुक्त किया जाएं।
मासूम से दुष्कर्म और जान से मारने की कोशिश
पुलिस के अनुसार, एक विद्यालय में कक्षा तीन की आठ वर्षीय बालिका का अपहरण कर आरोपित जंगल में ले गए और सामूहि दुष्कर्म करने के बाद चाकू से उसका गला रेत दिया फिर मृत समझकर वहां से फरार हो गए।
अगले दिन दोपहर में लहूलुहान मिली बालिका को पुलिसकर्मियों ने इंदौर के एमवायएच अस्पताल में भर्ती कराया, जहां लंबे समय तक चले उपचार के बाद वह ठीक हो सकी।
मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी बालिका का हाल जानने अस्पताल पहुंचे थे और बालिका के परिवार को इंदौर में मकान देने, खजराना मंदिर की दुकान देने और बालिका की पूरी पढ़ाई का जिम्मा सरकार द्वारा उठाने की बात कही थी।
55 दिन में सुनाया था फैसला
प्रकरण में पाक्सो एक्ट की विशेष न्यायालय ने घटना के महज 55 दिन में 21 अगस्त 2018 को आरोपित आसिफ खां और इरफान मेव को फांसी की सजा सुनाई थी।
विशेष न्यायाधीश निशा गुप्ता ने दोनों आरोपितों को भादसं की धारा 363 में को 7-7 साल की सजा, 10-10 हजार जुर्माना, 366 में 10-10 साल की सजा व 10-10 हजार का जुर्माना, धारा 307 में आजीवन कारावास और 376(डी) बी में फांसी की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी, तभी से दोनों उज्जैन सेंट्रल जेल ले सजा काट रहे हैं।