खंडवा : खंडवा नगर में ही होली पर्व पर कई क्विन्टल घीहर बिक जाता है। जलेबी की तरह दिखने वाली यह मिठाई वजन में तो जलेबी से हलकी होती है, लेकिन दिखती बड़े साइज की जलेबी की ही तरह है, जिसे एक बड़े सांचे के जरिये बनाया जाता है। पहले इसे शुद्ध देशी घी में बनाया जाता था, लेकिन अब सिर्फ ऑर्डर पर ही शुद्ध घी का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि इस मिठाई में केसर और ड्राई फ्रूट भी डाले जाते हैं।
सिंधी समाज के लोगों की मानें तो जिस तरह से दिवाली पर गिफ्ट और मिठाई देने का रिवाज हर समाज में है, ठीक उसी तरह सिंधी समाज में होली पर घीहर शगुन के रूप में बहन-बेटियों और रिश्तेदारों को भेजे जाने की परंपरा है। इसके बिना सिंधी समाज की होली अधूरी मानी जाती है। सिंधी समाज में घीहर होली पर्व के शगुन की मिठाई के रूप में भी प्रचलित है, जिसका उपयोग होली पर परिजनों का मुंह मीठा कराने में किया जाता है। होली के 15 दिन पहले से ही घीहर बनाने की शुरुआत हो जाती है। समाज के लोग इसे ऑर्डर देकर भी बनवाते हैं।
घीहर के बिना है होली अधूरी
वहीं सिंधी समाज की सोना वासवानी ने बताया कि वे अब बहू बेटी वाली हो चुकी हैं, लेकिन बचपन से लेकर आज तक खंडवा से ही घीहर मिठाई अपने घर लेकर जाती हैं। क्योंकि इसके बिना हमारी होली अधूरी है और यह हमारी सिंधी समाज की परंपरा है। कभी हम होली जलाकर होलीका पर जो मन्नत मानते हैं तो उसमें यह घीहर मिठाई ही चढ़ाते हैं । जैसे दूसरे लोग दिवाली पर मिठाई का लेनदेन करते हैं, वैसे ही हम अपनी बहन बेटियों को घीहर देकर होली मनाते हैं और घर पर आने वाले मेहमानों को भी घीहर देकर उनका स्वागत किया जाता है।