भोपाल न्यूज़: हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) के तहत एक अभियुक्त की जमानत अर्जी पर फैसला सुनाते हुए विधि आयोग से अधिनियम में संशोधन करने का सुझाव दिया है, ताकि विशेष पॉक्सो जज दोषियों को करावास की सजा के बजाय सुधारात्मक तरीके लागू कर सकें. खासकर, तब जब अभियुक्त व पीड़िता ने शादी कर ली हो. जस्टिस अतुल श्रीधरन की एकल पीठ ने इसका सुझाव दिया है.
जोर दिया कि अधिनियम 'बलात्कार' (सहमति के बिना) व 'वैधानिक बलात्कार' (सहमति से रेप, लेकिन दंडनीय हो, क्योंकि पीड़िता 18 वर्ष से कम की है) में अंतर नहीं करता है. सजा देने के मामले में ट्रायल जजों की लाचारी की बताई. कोर्ट ने कहा, पॉक्सो में केस बढ़े हैं. राज्य सरकार पॉक्सो के प्रावधानों का प्रचार-प्रसार करे. कोर्ट ने जनंसपर्क विभाग को निर्देश दिए हैं.
न्यायालय ने 'बलात्कार' और 'वैधानिक बलात्कार' के बीच अंतर साफ किया. कोर्ट ने कहा, दुष्कर्म अपराध है, सभ्य समाजों में दंडनीय बुराई है, लेकिन वैधानिक बलात्कार अपराध है, जो मानव विवेक के लिए प्रतिकूल नहीं है, लेकिन जो कानून द्वारा समकालीन सामाजिक प्रथाओं को ध्यान में रखते हुए निषिद्ध है.
न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पॉक्सो अपराध लिंग तटस्थ हैं और "बच्चे" शब्द को धारा 2 (डी) में "अठारह वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति" के रूप में परिभाषित किया गया है.
न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के प्रावधान, जो कि पेनिट्रेटिव सेक्सुअल, एग्रावेटेड पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट (रेप), सेक्सुअल असॉल्ट, एग्रावेटेड सेक्सुअल असॉल्ट और बच्चे के यौन उत्पीडऩ से संबंधित हैं, जहां अपराधी है वयस्क और वास्तविक सहमति अनुपस्थित है, वे उचित हैं. इसलिए, अशिक्षा और गरीबी से प्रभावित समाज के हाशिए के वर्गों पर इसके आवेदन में पॉक्सो अधिनियम के उपरोक्त "दमन" को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने इसे भारत के विधि आयोग के ध्यान में लाना आवश्यक समझा.
पॉक्सो में संशोधन के ये सुझाव
● जहां अभियोजिका सहमति की उम्र से कम है, पर वास्तविक सहमति है, न्यूनतम सजा न हो. विशेष कोर्ट (जो वरिष्ठ सत्र न्यायाधीश है, 20 साल+ न्यायिक अनुभव है) को विवेक दें कि तथ्यों के अनुसार सजा दें. इसे 20 साल तक बढ़ाया जा सके.
● अभियोजिका सहमति की उम्र से कम है. संबंध शादी में परिणत हो गया हो तो कैद की सजा की बजाय कोर्ट को सुधारात्मक तरीकों को लागू करने का अधिकार हो.