Chaitra Navratri 2022 : सजने लगे इंदौर में देवी के प्रसिद्ध मंदिर,चैत्र नवरात्र की हो रही विशेष तैयारी
शहर में कई ऐसे देवी मंदिर हैं जिनका संबंध इतिहास से भी है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इंदौर : शहर के देवी मंदिरों में चैत्र नवरात्र को लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। मंदिरों को सजाने के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठान्न के लिए भी रूपरेखा बन रही है। शहर में कई ऐसे देवी मंदिर हैं जिनका संबंध इतिहास से भी है जिसमें बिजासन माता मंदिर, हरसिदि्ध माता मंदिर, दुर्गा माता मंदिर प्रमुख हैं। इसके अलावा कई मंदिर ऐसे भी हैं जो कुछ दशकों पहले ही बने पर अलग-अलग विशेषताओं के कारण यह आस्था का केंद्र बन गए। इनमें अन्नपूर्णा मंदिर, श्रीश्री विद्या धाम, खजराना स्थित काली मंदिर, बर्फानी धाम, वैष्णव देवी मंदिर प्रमुख हैं।
शहर के पश्चिम क्षेत्र का अन्नपूर्णा मंदिर आस्था का केंद्र है। इसके गर्भगृह में मां अन्नपूर्णा, देवी गायत्री और देवी महाकाली के विग्रह स्थापित हैं। आर्य और द्रविड़ स्थापत्य शैली में इस मंदिर का निर्माण महामंडलेश्वर प्रभानंदगिरि महाराज ने 1959 में करवाया था। गर्भगृह के बाहर ऊपरी भाग में नौ देवियों की मूर्तियां भी बनी हुई हैं। इस मंदिर में दिन में तीन बार गर्भगृह में स्थापित मूर्तियों की पोषाक बदली जाती है। मंदिर परिसर में मां अन्नपूर्णा के अलावा भगवान शिव, चारों वेद और काल भैरव के मंदिर भी हैं। 1975 में मंदिर का मुख्य द्वार बनवाया गया था जिसमें चार हाथी बनाकर उन पर देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई गई हैं। यह द्वार इतना आकर्षक बना कि इसे हाथी वाले मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में मंदिर को नया स्वरूप दिया जा रहा है। यह करीब 20 करोड़ की लागत से तैयार होगा। मकराना मार्बल से हो रहा निर्माण कार्य 6600 वर्गफीट में किया जा रहा है। इसकी लंबाई 108 फीट और चौड़ाई 54 फीट होगी। मुख्य कलश की ऊंचाई 81 फीट होगी।
यह मंदिर श्री श्रीविद्या राजराजेश्वरी मां पराम्बा ललिता महात्रिपुरसुंदरी को समर्पित है। इसका निर्माण करीब 50 वर्ष पहले हुआ था। यहां देवी महात्रिपुरसुंदरी की सफेद संगमरमर से बनी करीब आठ फीट ऊंची मूर्ति है। इस मूर्ति में देवी शेर पर नहीं बैठी, बल्कि भगवान शिव की नाभि से निकले कमल पर विराजित हैं। इस मंदिर का निर्माण स्व. महामंडलेश्वर गिरजानंद सरस्वती ने करवाया था। यहां देवी को सूर्योदय से रात में विश्राम आरती तक हर पहर में भोग लगाया जाता है। सुबह दूध और फल के बाद नाश्ता, दिन में भोजन, शाम को फल और दूध, रात को भोजन और फिर दूध का भोग लगाया जाता है। यहां दिन में दो बार देवी की पोषाक बदली जाती हैं। दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर में शिव परिवार और गणेश परिवार को समर्पित मंदिर भी है। इसके अलावा यहां परशुराम, हनुमानजी, शालिग्राम, नवग्रह, शीतलामाता औरर भैरवजी के मंदिर भी हैं।
शहर के प्राचीन मंदिरों में से एक और सिद्ध मंदिर बिजासन माता का मंदिर है। पहाड़ी पर बने इस मंदिर में देवी नौ स्वरूपों में दर्शन देती है। मान्यता है कि यह मंदिर करीब एक हजार वर्ष पुराना है। किसी वक्त यहां घना जंगल था और यह स्थान तंत्र साधना के लिए उपयुक्त माना जाता था। शहर के विकास के साथ यहां का भी विकास हुआ और आज यहां नवरात्र के अलावा पर्व विशेष व अवकाश के दिन भक्तों की खासी भीड़ लगी रहती है। पूर्व में माता बिजासन एक ओटले पर विराजित थीं, बाद में मंदिर का निर्माण इंदौर के महाराजा शिवाजीराव होलकर ने 1760 में कराया था। कहा जाता है कि होलकर राजवंश की महिलाएं यहां विशेष पूजा करने आती थीं। बिजासन माता को सौभाग्य और संतान दायिनी माना जाता है। इसके चलते विवाह के बाद यहां नवविवाहितों को माता के दर्शन कराने जरूर लाया जाता है। किवदंती यह भी है कि आल्हा-ऊदल ने भी मांडू के राजा को परास्त करने के लिए माता से मन्नत मांगी थी। पहले होलकर शासकों ने यहां मराठा शैली में मंदिर का निर्माण करवाया था पर अब इसे और भी सुंदर बना दिया गया है। वर्तमान में यहांं कई छोटे-छोटे मंदिर भी बन गए हैंज़
शहर के प्राचीन मंदिरों में से एक है हरसिद्धि माता का मंदिर। इस मंदिर को लेकर खासी मान्यता, किवदंती है कि इस मंदिर में मां की जो मूर्ति स्थापित है, वह बावड़ी में से निकली थी और जब सूबेदार मल्हारराव होलकर युद्ध लड़कर आए थे तब उन्हें देवी ने दर्शन दिए थे। इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होलकर ने 21 मार्च 1766 को करवाया था। मंदिर में स्थापित देवी की दिव्य मूर्ति पूर्वाभिमुखी महिषासुर मर्दिनी मुद्रा में है। चार भुजाओं वाली देवी दुर्गा की इस मूर्ति के एक हाथ में खड्ग, दूसरे हाथ में त्रिशूल, तीसरे हाथ में घंटा और चौथे हाथ में असुर का मुंड है।यूं तो यहां हर दिन भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्र में यहां भक्तों की बहुत भीड़ रहती है। नवरात्र के अलावा मुख्य अवसरों पर मराठी परिवार की महिलाएं यहां देवी की ओटी भरने भी आती हैं। मंदिर परिसर में शंकरजी व हनुमानजी की भी मूर्तियां हैं। चैत्र नवरात्र की दशमी और अश्विन मास की दशमी को मां का विशेष श्रृंगार होता है। इसमें भक्त देवी के सिंह वाहिनी के रूप में दर्शन करते हैं। इस मंदिर में दर्शन के लिए आज भी होलकर राजवंश के सदस्य आते हैं।