Bhopal: मध्य प्रदेश को 10 माह में मिले 3.85 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव
"हर महीने औसतन 38500 करोड़ के निवेश"
भोपाल: औद्योगिक विस्तार के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का फॉर्मूला अपनाया है और नीतियों को सरल बनाया है उससे देश-दुनिया के निवेशकों के लिए मप्र पहला पसंदीदा प्रदेश बन गया है। यही वजह है कि1 मार्च 2024 से लेकर दिसंबर तक के 10 महीनों में मप्र को देश-दुनिया से 3.85 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। यह इस बात का संकेत है कि मप्र सरकार ने प्रदेश को इंडस्ट्रियल हब बनाने के लिए किस प्रकार तत्पर है। सरकार की कोशिश उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ हमारी व्यवस्थाओं के बलबूते पर आईटी, टूरिज्म, खनन, उर्जा सहित सभी सेक्टर में गतिविधियों के विस्तार की है। रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव प्रदेश में कार्य संस्कृती बदलने का प्रयास है। यह कॉन्क्लेव प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए राज्य शासन की प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति है।
औद्योगिक विकास के इन क्षेत्रीय समागमों में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव सहित राज्य शासन के प्रमुख अधिकारियों की सहभागिता, प्रतिबद्धता, पारदर्शिता और जो कहा उसे तय समय-सीमा में कर दिखाने की भावना का असर है कि प्रदेश में तेजी से निवेश बढ़ा है। क्षेत्रीय कॉन्क्लेव के माध्यम से औद्योगिक विकास की प्रक्रिया में प्रदेश के जन-जन को शामिल किया जा रहा है। गौरतलब है कि निवेश और उद्योग के लिए सभी प्रकार की अनुकूलता मप्र में उपलब्ध है। प्रदेश में विनम्र, लगनशील, परिश्रमी और समर्पित मानव संसाधन उपलब्ध है। राजनैतिक नेतृत्व के साथ-साथ प्रशासकीय व्यवस्था भी उद्योगों के लिए अनुकूल है और उद्योग-मित्र नीति भी विद्यमान है। इसको देखते हुए निवेशकों ने प्रदेश का रूख किया है।
हर महीने औसतन 38500 करोड़ के निवेश: सरकार का मानना है कि उद्योग केवल उद्योगपति के लिए नहीं होता अपितु जहां भी उद्योग लगेगा, वहां रोजगार के अवसर सृजित होंगे, राज्य सरकार को राजस्व मिलेगा और देश-दुनिया में हमारे राज्य की साख बनेगी। सरकार प्रदेश में निवेश आमंत्रित करने और औद्योगिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस कारण 1 मार्च 2024 से लेकर दिसंबर तक के 10 महीनों में मप्र को देश-दुनिया से 3.85 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। यानी निवेशकों ने मप्र में हर महीने औसतन 38500 करोड़ के निवेश प्रस्ताव दिए हैं। यह निवेश जब धरातल पर उतरेगा, तब राज्य के 3.69 लाख नौजवानों को रोजगार मिलेगा। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मप्र को निवेश मिलने की शुरुआत महाकाल की नगरी उज्जैन से हुई। 10 महीने पहले 1 मार्च 2024 को उज्जैन में हुई रीजनल इंडस्ट्रीज कॉन्क्लेव में 1 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव आए थे, इसके बाद से मप्र को लगातार निवेश मिल रहा है।
खेती के साथ उद्योग पर फोकस: मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राज्य को खेती के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के साथ ही उद्योग के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाए। उन्होंने निवेश के लिए अभी तक चल रही ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की प्रक्रिया में बदलाव करते हुए रीजनल इंडस्ट्रीज कॉन्क्लेव शुरू किये। मुख्यमंत्री के इस कदम से बदलाव यह हुआ कि निवेशकों को राज्य के अलग-अलग हिस्से में अपनी पसंद के हिसाब से निवेश करने का मौका मिला। मार्च से लेकर दिसंबर तक के 10 महीनों में उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, रीवा और नर्मदापुरम संभाग में रीजनल इंडस्ट्रीज कॉन्क्लेव आयोजित की जा चुकी हैं। 6 संभागों में हुए उद्योग सम्मेलनों में 2.07 लाख के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का कहना है कि उद्योगों के लिए मप्र का वातावरण हर तरह से अनुकूल है। निवेश के क्षेत्र में मप्र सरकार के प्रयासों को निवेशकों ने सराय है। मप्र में निवेश की अपार संभावनाएं हैं। 2025 को हम उद्योग वर्ष के रूप में मनाने जा रहे हैं। मप्र तेजी से तरक्की करने वाला राज्य बनेगा।
जीआईएस में छाएगा मप्र का जादू: देश-दुनिया के निवेशकों ने मप्र में हर क्षेत्र में निवेश की इच्छा जताई है। फरवरी में मप्र की राजधानी भोपाल में पहली बार होने जा रहे ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में दुनिया भर से 12000 निवेशक, उद्यमी पहुंचेंगे। जिसमें विदेशों से ही 1000 से ज्यादा आएंगे। जीआईएस के जरिए मप्र उद्योग के क्षेत्र में अलग ही पहचान बनाएगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए मप्र के बाहर देश के प्रमुख औद्योगिक शहरों मुंबई, कोयंबटूर, बैंगलुरु, कोलकाता में रोड शो किए। जिसमें 1 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव आए। साथ ही पिछले महीने नवंबर में इंग्लैंड और जर्मनी की यात्रा की। दोनों देशों की यात्रा में 78 हजार करोड़ रुपए का निवेश मिला। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उद्योगों को जमीन आवंटन से लेकर सभी तरह की अनुमतियां देने के लिए चली आ रही सिंगल विंडो की जटिल प्रक्रिया को बंद करके कलेक्टरों को यह जिम्मेदारी सौंप दी। इसका फायदा यह हुआ है कि निवेशकों को जमीनों से लेकर सभी तरह की अनुमतियां हाथों-हाथ मिलने लगीं।