केरला के ये आदिवासी नहीं होते तो इतिहास बन जाती चावल की ये 54 बेशकीमती किस्में
लेटेस्ट न्यूज़: भारत कृषि प्रधान देश है, हर मौशम में यहां पर कोई न कोई फसल लगाई जाती है। भारत केृ गेहूं, चावल, बाजरा के साथ अन्य फसलों का सेवन तो पूरी दुनिया करती है। वैसे भी अगर देखा जाए तो किसान का जिवन सबसे ज्यादा परिश्रम से भरा होता है। अब समय बदल गया है दुनिया देशी के बजाय हाइब्रिड पर फोकस कर रही है। कम लागत में ज्यादा मुनाफा, लेकिन कई मामलों में ये हाईब्रिड फसल स्वास्थ्य के लिए फायदा के साथ ही नुकसानदेह भी होता है। अब देसी प्रजातियों के बजाय हाइब्रिड प्रजातियां खेतों में उगने लगी हैं। लेकिन, इस दौर में भी एक ऐसे भारतीय हैं जो धान की 54 प्रजातियों (Cheruvayal Raman Native Paddy) को बचा कर रखे हुए हैं। केरल के कुचरिचिया आदिवासी समुदाय के एक आम सदस्य की तरह दिखने वाला चेरुवयल रामन (Cheruvayal Raman Native Paddy) 72 साल है। पहली नजर में वह केरल के कुरिचिया आदिवासी समुदाय के एक आम सदस्य की तरह ही दिखते हैं। आम लोगों की तरह दिखने वाले राम आम नहीं है वो पूरे केरल में स्थानीय धान प्रजातियों (Native paddy saved) के संरक्षक के तौर पर जाने जाते हैं। उन्होने धान की 54 स्थानीय प्रजातियों को बचाकर रखी है।
हाईब्रिड प्रजातियों को मात देखर बचा कर रखी धान की 54 स्थानीय प्रजातियां
आज हाल यह है कि, पुरी दुनिया में हाइब्रिड प्रजातियों को जोर दिया जा रहा है, हर फसल की स्थानीय फसलें दम तोड़ रही हैं। हाल यही रहा तो वो दिन भी दूर नहीं है जब ये किस्सों और कहानियों में रह जाएंगी और एक दिन लोग इसे भूल जाएंगे। इस बीच पिछले 20 साल की कड़ी मेहनत और देखरेख के बल पर चेरुवयल रामन ने धान की 54 स्थानीय प्रजातियों को बचाकर रखा है। राम ने काफी मेहनत कर धान की ये 54 प्रजातियों को बचाये रखा, उनके इस काम के लिए उन्हें केरल सरकार की ओर से सम्मानित भी किया गया है। रामन ने पूरी जिंदगी धान की ही खेती की है। उन्हें यह देखर काफी कष्ट होता था कि, देशी-विदेशी कंपनियों ने हाइब्रिड वैरायटी के धान स्थानीय प्रजातियों को हाशिए पर धकेल दिया। इस देख उन्होंने फैसला किया कि वो डेढ़ एकड़ में स्थानीय प्रजाति उगाएंगे। आज हम जैव विविधता की बातें करते हैं, टीवी पर डिबेट करते हैं, बहस करते हैं लेकिन इसे बचाये रखने की असल में किसी ने कसम खाई है तो रामन जैसे किसान। 72 साल का यह आदिवासी असल मायनों में जैव विविधता के लिए काम कर रहा है। उनके इसी योगदान के लिए उन्हें प्लांट जीनोम सेवियर अवॉर्ड और केल सरकार के पीके कलान अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
चावल के दाने को देख कर बता सकते हैं कौन सी प्रजाती का है
रामन कहते हैं, 2000 के दशक के शुरू में मैंने यह यात्रा शुरू की। वायनाड हमेशा से अपने खुशबूदार चावलों की स्थानीय प्रजातियों के मशहूर रहा है। लेकिन धीरे-धीरे जेनेटिकली मॉडिफाइड और हाइब्रिड प्रजातियों ने जडे़ं जमानी शुरू कर दी थीं। रामन दस साल की उम्र से खेती कर रहे हैं। जब उनके चाचा का देहांत हुआ तो उनकी 40 एकड़ जमीन भी रामन के ही हिस्से में आई। उन्हें चावल की इतनी परख है कि, वो सिर्फ चावल के दाने को देखकर बता सकते हैं कि वो कौन सी प्रजाति का है। उनका पूरा जिवन सदियों से उस क्षेत्र में उगर रहे धान की फसल के लिए समर्पित है। वो अपनी फसल को काटकर उसे लगभग 150 साल पुराने मिट्टी के बने अपने पुश्तैनी घर में रखते हैं। जो उनका भंडारगृह बन गया है।
स्थानिय युवा किसानों को पता चलने लगी अहमीयत
उनके काम के बारे में जब लोगों को पता चला तो लोग दिलचस्पी दिखाने लगे। खासकर युवा किसानों को जब पता चला कि, स्थानीय प्रजातियों को वो बचाने की कोशिश कर रहे हैं तो उन्होंने भी इनकी खेती सिखनी शुरू कर दी। इन 54 स्थानिय प्रजातियों की खेती की बारीकियां सीखने के लिए युवा किसान रामन के पास आते हैं। रामन उन्हें वो सब सिखाते हैं साथ ही इन अनूठी स्थानी प्रजातियों के बीज भी देते हैं वो भी फ्री में। हालांकि, उनकी एक शर्त भी है। वो कहते हैं क, मैं उनसे कहता हूं जब तुम्हारी फसल हो तो जितना धान मैंने आपको बीज के तौर पर दिया वह मुझे उस फसल से लौटा देना।