हिजाब विवाद : CM बसवराज बोम्मई को होगा फायदा या नुकसान? जानिए

पिछले साल नवंबर से ही कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई की कुर्सी पर खतरा बताया जा रहा है

Update: 2022-02-28 11:47 GMT

बेंगलुरु: पिछले साल नवंबर से ही कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई की कुर्सी पर खतरा बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री बनने के 100 दिन के भीतर ही उनके गृह जिले में आने वाली एक विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी की हार ने सिर्फ पार्टी की साख को ही नुकसान नहीं पहुंचाया, बल्कि बोम्मई के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी थी। उसके बाद दिसंबर में धर्मांतरण विरोधी बिल को भी सीएम विधान परिषद से पास नहीं करा पाए। इसको लेकर भी कहा गया कि बोम्मई एक प्रभावशाली सीएम की भूमिका में अपने को सिद्ध नहीं कर पाए हैं

अचानक कर्नाटक में शुरू हुए हिजाब विवाद ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया। खुद बीजेपी के अंदर यह कहा गया कि अंदरूनी राजनीति में भले ही इस विवाद के जरिए पार्टी को फायदा हो जाए, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह संदेश देने की कोशिश में लगे हुए हैं कि उनके नेतृत्व में भारत में सभी मजहब और विचारधारा के लोगों को उनकी पसंद के अनुसार खाने, पीने और पहनने की स्वतंत्रता है, उस बीच हिजाब को लेकर खड़े हुए विवाद ने फिर से उस धारणा को पुख्ता करने का काम किया है कि भारत में बीजेपी के नेतृत्व में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया जाता है। यहीं से राजनीतिक गलियारों में यह सवाल खड़ा हुआ कि इस विवाद ने बोम्मई की कुर्सी का खतरा बढ़ा दिया है? या इस विवाद के जरिए उनकी कुर्सी पर आया खतरा टल गया है?
क्या कुर्सी का खतरा टल गया है
जो लोग इस राय के हैं कि बोम्मई की कुर्सी पर चल रहा खतरा टल गया है, उनका तर्क यह है कि इस विवाद के जरिए बोम्मई की छवि एक 'प्रखर' हिंदूवादी नेता के रूप में बनी है। उन्होंने अपनी उदारवादी छवि का त्याग कर दिया है। ऐसा करना उनके लिए अपरिहार्य भी हो गया था। पार्टी के अंदर कई 'फायरब्रांड' नेता मुख्यमंत्री पद के लिए प्रयत्नशील बताए जा रहे हैं। हाल के वर्षों में देखा गया है कि बीजेपी शासित ज्यादातर राज्यों के मुख्यमंत्री अपने को हिंदुत्व झंडाबरदार के रूप में पेश करने में ही कामयाबी देख रहे हैं। उन्हें लगने लगा है कि इसी के जरिए वे आगे बढ़ सकते हैं।
मध्यप्रदेश, असम, हरियाणा तक के मुख्यमंत्रियों ने पिछले कुछ वर्षों में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'कॉपी' की है। हिजाब विवाद के जरिए बोम्मई ने भी न केवल अपनी नई छवि गढ़ी, बल्कि मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल अपने विरोधियों के दांव की धार भी कुंद कर दी है। इस विवाद के बीच उन्हें कुर्सी से हटाना आसान नहीं होगा, क्योंकि इससे गलत संदेश जाने का खतरा बना रहेगा। यह माना जा सकता है कि अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए उन्हें हटाया गया और बीजेपी ऐसी धारणा को किसी भी कीमत पर स्थापित नहीं होने देना चाहेगी। इस वजह से फिलहाल बोम्मई 'सेफ जोन' में आ गए हैं। उन्हें हटाने की मुहिम में लगे नेताओं को फिलहाल खामोश रहना ही होगा।
कुर्सी पर खतरा क्यों माना जा रहा है
ऐसे लोगों की तादाद कम भी नहीं है जो यह मानते हैं कि हिजाब विवाद ने बोम्मई की कुर्सी को सुरक्षित नहीं किया है, बल्कि खतरे को बढ़ा दिया है। इनका तर्क यह है कि हिजाब विवाद ने उन पर प्रशासनिक अक्षमता की जो तोहमत लगती थी, उसे और पुख्ता कर दिया है। यह विवाद बेमौसम का है, जिसे पार्टी को कोई फायदा नहीं होने वाला है। यह कॉलेज स्तर का विवाद था, जिसे बहुत आसानी के साथ खत्म कराया जा करता था। सीएम ऐसा करने में असफल साबित हुए। यह भी कहा जा रहा है कि बोम्मई का अपने मंत्रियों पर भी कोई नियंत्रण नहीं हैं। उनके मंत्रियों के कई बयान हाल के दिनों में राज्य सरकार के लिए संकट का सबब बने, लेकिन बोम्मई उन मंत्रियों को प्रभावी तौर पर रोक नहीं पाए।
नियंत्रण नहीं कर पा रहे बोम्मई?
बोम्मई का अपने पूर्ववर्ती सीएम बी.एस. येदियुरप्पा जैसा आरएसएस, उसके अनुषांगिक संगठनों, बीजेपी और सरकार पर नियंत्रण नहीं है। मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से येदियुरप्पा भी सहज नहीं हैं। एक वक्त बोम्मई की गिनती येदियुरप्पा के विश्वासपात्र सहयोगियों में होती थी। बोम्मई येदियुरप्पा की कैबिनेट में मंत्री भी रहे। कहा तो यहां तक जाता है कि येदियुरप्पा की पसंद पर ही बोम्मई का चयन हुआ था, लेकिन राजनीति में रिश्तों के कोई मायने नहीं होते। येदियुरप्पा को पता है कि बोम्मई की मजबूती उनके भविष्य के रास्ते बंद कर सकती है। इस वजह से उन्हें अब बोम्मई रास नहीं आ रहे हैं।
क्या है बोम्मई का भविष्य
यह सही है कि हिजाब विवाद से बोम्मई का फौरी तौर पर वाला संकट टल गया है। जब तक यह पूरा मुद्दा खत्म नहीं हो जाता है तब तक बीजेपी नेतृत्व बोम्मई को किसी भी सूरत में नहीं हटाएगा, लेकिन बोम्मई के लिए आने वाला समय बहुत आसान भी नहीं है। उन्हें खुद को एक मजबूत प्रशासक के रूप में तो स्थापित करना ही होगा, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के साथ बेहतर समन्वय भी स्थापित करना होगा।
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