आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने कहा- समस्त प्राणियों में मनुष्य ही श्रेष्ठ
बसवनगुड़ी के जिनकुशल सूरि जैन दादावाड़ी ट्रस्ट में विराजित आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने कहा कि मनुष्य योनि अनेक जन्मों के उपरान्त कठिनाई से प्राप्त होती है
बेंगलूरु. बसवनगुड़ी के जिनकुशल सूरि जैन दादावाड़ी ट्रस्ट में विराजित आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने कहा कि मनुष्य योनि अनेक जन्मों के उपरान्त कठिनाई से प्राप्त होती है। मान्यता चाहे जो भी हो, परन्तु यह सत्य है कि समस्त प्राणियों में मनुष्य ही श्रेष्ठ है। इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले समस्त प्राणियों की तुलना में मनुष्य को अधिक विकसित मस्तिष्क प्राप्त है जिससे वह उचित-अनुचित का विचार करने में सक्षम होता है। पृथ्वी पर अन्य प्राणी पेट की भूख शान्त करने के लिए परस्पर युद्ध करते रहते हैं और उन्हें एक-दूसरे के दु:खों की कतई चिन्ता नहीं होती। परन्तु मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य समूह में परस्पर मिल-जुलकर रहता है और समाज का अस्तित्व बनाए रखने के लिए मनुष्य को एक-दूसरे के सुख-दु:ख में भागीदार बनना पड़ता है। अपने परिवार का भरण-पोषण, उसकी सहायता तो जीव-जन्तु, पशु-पक्षी भी करते हैं परन्तु मनुष्य ऐसा प्राणी है, जो सपूर्ण समाज के उत्थान के लिए प्रत्येक पीडि़त व्यक्ति की सहायता का प्रयत्न करता है। किसी भी पीडि़त व्यक्ति की नि:स्वार्थ भावना से सहायता करना ही समाज-सेवा है। वस्तुत: कोई भी समाज तभी खुशहाल रह सकता है जब उसका प्रत्येक व्यक्ति दु:खों से बचा रहे। किसी भी समाज में यदि चंद लोग सुविधा-सम्पन्न हों और शेष कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहे हों, तो ऐसा समाज उन्नति नहीं कर सकता। पीडि़त लोगों के कष्टों का दुष्प्रभाव स्पष्टत: सम्पूर्ण समाज पर पड़ता है। समाज के चार सम्पन्न लोगों को पास-पड़ोस में यदि कष्टों से रोते-बिलखते लोग दिखाई देंगे, तो उनके मन-मस्तिष्क पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। चाहे उनके मन में पीडि़त लोगों की सहायता करने की भावना उत्पन्न न हो, परन्तु पीडि़त लोगों के दु:खों से उनका मन अशान्त अवश्य होगा। किसी भी समाज में व्याप्त रोग अथवा कष्ट का दुष्प्रभाव समाज के सम्पूर्ण वातावरण को दूषित करता है और समाज की खुशहाली में अवरोध उत्पन्न करता है। समाज के जागरूक व्यक्तियों को सम्पूर्ण समाज के हित में ही अपना हित दृष्टिगोचर होता है। मनुष्य की विवशता है कि वह अकेला जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। आचार्य ने कहा कि जीवन-पथ पर प्रत्येक व्यक्ति को लोगों के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। एक-दूसरे के सहयोग से ही मनुष्य उन्नति करता है। परन्तु स्वार्थी प्रवृति के लोग केवल अपने हित की चिन्ता करते हैं। उनके हृदय में सम्पूर्ण समाज के उत्थान की भावना उत्पन्न नहीं होती। ऐसे व्यक्ति समाज की सेवा के अयोग्य होते हैं।