आदिवासी सरहुल पर्व में लाल पाड़ और सफेद साड़ी क्यों पहनते हैं ? जानें इसके पीछे का संदेश
आदिवासी धर्मावलंबी सुबह की पूजा पाठ करने के बाद जल और फूल का वितरण करते हैं. जिसके बाद लोग लाल पाड़ और सफेद साड़ी पहनकर मांदर की थाप पर नाचते हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। झारखंड में सरहुल पर्व 4 अप्रैल को धूमधाम से मनाया जाएगा, सरकार ने इस बार शोभा यात्रा निकालने की अनुमति दे दी है. कोरोना संक्रमण के कारण 2 साल जुलूस नहीं निकाला जा सका था. पर्व को लेकर गाइड लाइन भी जारी कर दिया गया है.
इधर शोभा यात्रा कि अनुमति मिलने के बाद आदिवासी समाज के लोगों में हर्ष का महौल है. क्यों कि आदिवासी समाज सरहुल को नये साल का आगमन मानते हैं. क्यों कि लोगों का मानना है कि इस त्योहार को मनाने के बाद ही नये फसल को उपयोग कर सकते हैं. इस दिन आदिवासी धर्मावलंबी सुबह की पूजा पाठ करने के बाद जल और फूल का वितरण करते हैं. इसके जरिये ये संदेश दिया जाता है कि फूल खिल गये हैं इसलिए फल की प्राप्ति निश्चित है. जिसके बाद लोग लाल पाड़ और सफेद साड़ी पहनकर मांदर की थाप पर नाचते हैं
क्या है लाल पाड़ और सफेद साड़ी का महत्व
नाचगान आदिवासियों की प्रमुख संस्कृति में से एक है, क्यों कि ऐसी मान्यता प्रचलित है कि जे नाची से बांची. यानी कि जो नाचेगा वही बचेगा. इस दिन महिलाएं लाल पाड़ और सफेद साड़ी पहनकर नाचते गाते हैं. क्यों कि सफेद साड़ी पवित्रता और शालीनता का संदेश देता है. वहीं लाल संघर्ष करते रहने का संदेश देता है.
कैसे मनाया जाता है सरहुल
सरहुल की तैयारी एक सप्ताह पहले ही शुरू हो जाती है, पर्व के एक दिन से लेकर पूजा होने तक पहान उपवास करता है. पर्व के प्रात: मुर्गा बांगने के पहले ही पूजार दो नये घड़ों में 'डाड़ी' का जल भर कर चुपचाप सबकी नजरों से बचाकर गाँव की रक्षक आत्मा, सरना मां के चरणों में अर्पित करता है. आदिवासी इस दिन साल के वृक्ष की पूजा करते हैं
इससे पहले सरना स्थल की साफ सफाई की जाती है. उस दिन सुबह के वक्त गांव के लोग चूजा पकड़ने जाते हैं जिसे पूजा में इस्तेमाल किया जाता है. उस पर पहान पुजार अन्न के दाने को फेंकते हैं और मां सरना से गांव की खुशहाली के लिए दुआ मांगी जाती है.