रांची में जनगणना में सरना धर्मकोड की मांग पर जुटेंगे देश-विदेश के आदिवासी

Update: 2023-03-12 09:19 GMT

रांची न्यूज: भारत की जनगणना के फॉर्म में सरना आदिवासी धर्मावलंबियों के लिए अलग धर्मकोड की मांग पर गोलबंदी तेज हो रही है। 12 मार्च रविवार को झारखंड की राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में विभिन्न आदिवासी संगठनों ने महारैली का आयोजन किया है। दावा किया जा रहा है कि इस महारैली में झारखंड और देश के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ नेपाल, भूटान, बांग्लादेश जैसे देशों के लाखों सरना आदिवासी धर्मावलंबी भाग लेंगे। शनिवार शाम से ही बड़ी तादाद में लोग रैली स्थल पर पहुंचने लगे हैं। बता दें कि झारखंड की विधानसभा ने वर्ष 2021 में 11 नवंबर को एक विशेष सत्र आहूत कर जनगणना में सरना आदिवासी धर्म के लिए अलग कोड दर्ज करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था। झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद की संयुक्त साझेदारी सरकार द्वारा विधानसभा में लाये गये इस प्रस्ताव का राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने भी समर्थन किया था।

इस प्रस्ताव को पारित किये जाने पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि जनगणना में सरना आदिवासी धर्म कोड के लिए अलग से कॉलम बनाये जाने से आदिवासियों को स्पष्ट पहचान मिलेगी। जगणना के बाद सरना आदिवासियों की जनसंख्या का स्पष्ट पता चल पायेगा। उनकी भाषा, संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण और संवर्धन हो पायेगा। इसके साथ ही आदिवासियों को मिलने वाले संवैधानिक अधिकारों, केंद्रीय योजनाओं तथा भूमि संबंधी अधिकारों में भी लाभ होगा। आदिवासियों के एक प्रमुख संगठन राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के केंद्रीय सलाहकार विद्यासागर केरकेट्टा ने कहा कि राज्य की विधानसभा द्वारा सरना आदिवासी धर्मकोड का प्रस्ताव पारित किये दो साल से ज्यादा वक्त गुजर चुका है, लेकिन अब तक इसपर केंद्र ने निर्णय नहीं लिया है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2011 की जनगणना में 49 लाख 57 हजार 416 लोगों ने धर्म के कॉलम में सरना लिखा था, लेकिन आधिकारिक तौर पर सरकार ने जनगणना में यह आंकड़ा नहीं जारी किया।

सरना आदिवासी धर्मगुरु बंधन तिग्गा ने कहा कि सरना कोड ही हमें पहचान देगा। इसबार आर-पार की लड़ाई होगी। उन्होंने कहा कि सरना धर्म कोड नहीं तो वोट नहीं का निर्णय लिया जायेगा। जनगणना प्रपत्र में हिंदू, ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन और सिख धर्म को जिस तरह जगह मिली है, उसी तरह की व्यवस्था सरना आदिवासी के लिए भी हो। प्रकृति की पूजा करने वाले 15 करोड़ आदिवासी देश के विभिन्न राज्यों में रहते हैं और यह उनकी पहचान से जुड़ा मुद्दा है।

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