जमशेदपुर न्यूज़: पूर्वी सिंहभूम का इलाका नक्सलमुक्त होने की स्थिति में है. इसकी घोषणा की महज औपचारिकता ही बाकी है. पूरे इलाके से नक्सलियों का दस्ता या तो पश्चिमी सिंहभूम की तरफ कूच कर गया है या फिर दूसरे इलाकों में जाकर पनाह ली है. अब पूरे राज्य को नक्सलमुक्त बनाने के लिए पूर्वी सिंहभूम के मॉडल पर काम होगा.
बीजेओबीआरसी है रेड जोन वर्ष 2011 से पहले तक बंगाल-झारखंड-ओडिशा बॉर्डर रिजनल कमेटी, जिसे रेड जोन कहा जाता था वह नक्सलियों के लिए अहम पड़ाव था. इस जोन में नक्सली नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी की विशेष पैठ थी. उनके अंगरक्षक के रूप में इसी जोन के नक्सली रहते थे.
किशन जी के मारे जाने पर बिखराव सीपीआई माओवादी के पूर्व नेता मल्लोजुला कोटेश्वर राव ऊर्फ किशनजी की मौत 24 नवम्बर 2011 में झारखंड और पश्चिम बंगाल के सीमांचल पश्चिम मेदिनापुर में हुई थी. कोबरा बटालियन की 1000 फोर्स ने उन्हें घेरकर मार गिराया था. उसके बाद से नक्सलियों के खिलाफ लगातार ऑपरेशन चला और सबसे ज्यादा असर बंगाल-झारखंड-ओडिशा बार्डर रिजनल कमेटी पर पड़ा.
दस साल में एक भी हत्या नहीं वर्ष 2013 से लेकर 2023 तक पूर्वी सिंहभूम में नक्सलियों द्वारा न तो किसी की हत्या की गई और न ही पुलिस को वे लोग निशाना बनाना सके. पुलिस ने भी नक्सलियों के सफाए के लिए नागरिक सुरक्षा समिति और दलामा आंचलिक सुरक्षा समिति के सदस्यों की मदद ली.
जिन्होंने पुलिस के साथ मिलकर नक्सलियों को खदेड़ दिया. हालांकि अब नक्सली गतिविधियों के खत्म होने के बाद पुलिस की मददगार इन दोनों संस्थाओं का वजूद खत्म होने की स्थिति में है.
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एक कान्हू मुंडा को छोड़कर बंगाल-झारखंड-ओडिशा बॉर्डर रिजनल कमेटी के लगभग सभी सदस्यों ने पूर्वी सिंहभूम को छोड़ दिया और सारंडा के ट्राई जोन में जाकर पनाह ली. बाद में गुड़ाबांदा में एक बचे नक्सली कान्हू मुंडा उर्फ मंगल ने फरवरी वर्ष 2017 में आत्मसमर्पण कर दिया. उसके बाद तो नक्सलियों के इस इलाके से पैर उखड़ गए.
हम कोशिश में हैं कि नक्सली गतिविधियों को किसी भी तरह पनपने न दें. इसलिए वे इलाके जहां पर थोड़ी भी गतिविधियां मिलती हैं वहां पर कार्रवाई की जाती है. यह कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी, वह भी आम लोगों के सहयोग से.- प्रभात कुमार, एसएसपी