झारखंड में इस बार लोगों की थाली से गायब हो सकता है चावल
झारखंड में मॉनसून की दगाबाजी से किसान, कारोबारी और कॉमन मैन सभी परेशान हैं.
झारखंड में मॉनसून की दगाबाजी से किसान, कारोबारी और कॉमन मैन सभी परेशान हैं. हाल ये है कि सुखाड़ के समीकरण ने धान से चावल तक के सफर का रास्ता ही रोक दिया है. यानि अब आम आदमी की थाली से चावल के गायब होने का खतरा मंडराने लगा है.
झारखंड में मॉनसून की बेरुखी इस बार आपके जायके पर असर डालने वाली है. जी हां आप इसे मजाक समझने की भूल कतई न करें. खासकर गरीब तबका और आम आदमी तो बिलकुल नहीं. बाजार में पिछले दो महीनों में उष्णा चावल के दामों में प्रति किलो 6 से 8 रुपये की वृद्धि हुई है. वजह है राइस मिल से थोक बाजारों तक चावल का पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंचना. चूंकि चावल आम आदमी की थाली का श्रृंगार है. लिहाजा हर किसी का परेशान होना स्वाभाविक है.
राजधानी के सबसे बड़े राइस मिल के संचालक अंकित गेड़ा ने बताया कि राइस मिल तक पहुंचने वाले धान पर इस बार मॉनसून का ग्रहण लगा है. दरअसल रांची के करीब 15 राइस मिल समेत राज्यभर के लगभग 60 मिल तक धान पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच रहा है. ये धान किसानों से, ब्रोकर या फिर पैक्स के माध्यम से राइस मिल तक पहुंचते हैं. लेकिन हालात ने पिछले बीस साल के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है.
मिल संचालक ने बताया कि दरअसल ज्यादातर राइस मिल अपने पिछले साल के धान के स्टॉक से काम चला रहे हैं. कल तक जिस राइस मिल में हर दिन 300 से 400 टन धान की जरूरत होती थी. आज वहां महज 100 से 150 टन धान की ही प्रोसेसिंग हो पा रही है.
मॉनसून की मार से राज्यभर के किसान परेशान हैं. हाल ये है कि इस बार किसानों के पास खुद के खाने के लिए भी धान के लाले पड़ गये हैं. राजधानी के सबसे बड़े धान उत्पादक इलाके कांके के किसान भरत महतो बताते हैं कि वे करीब 50 एकड़ में धान लगाते हैं. लेकिन इस बार सबकुछ बर्बाद होता नजर आ रहा है. दरअसल मौसम को देखते हुए किसानों ने भी पिछले साल का धान खुद के खाने के लिए अपने पास रख लिया है.
जाहिर है जब राइस मिल तक धान पहुंचेगा ही नहीं, तो बाजार में नये चावल आएंगे कहां से. रांची के थोक कारोबारियों की मानें तो बढ़ती कीमतों की वजह से हमेशा भरा रहने वाला पंडरा बाजार भी सूना हो गया है. खुदरा व्यापारी भी बढ़ती कीमतों के कारण माल का उठाव करने पंडरा नहीं पहुंच रहे.