बैठक हुई, फिर पहाड़ काट सड़क बनाने का लिया गया निर्णय
चाकुलिया के डाहरडीह टोला, जयनगर, दुआरिशोल और पश्चिम बंगाल के खकड़ीझरना समेत आस-पास के गांव के लोग अक्सर किसी काम से एक दूसरे के राज्य में आना जाना करते थे। इसके लिए ग्रामीणों को करीब 12 किमी की दूरी तय कर जाना पड़ता था। फिर दोनों राज्यों के ग्रामीणों ने बैठक की और रानी पहाड़ को काट सड़क बनाने की निर्णय लिया। इसका नेतृत्व दुआरीशोल में रहने वाले दशरथ मांडी ने किया। फिर क्या था ग्रामीण अपने हाथों में छैनी, हथौड़ा, कुदाल लेकर पहाड़ काट सड़क बनाने में जुट गई। अब ग्रामीणों ने सड़क का निर्माण लगभग पूरा कर लिया है। लेकिन कई बड़े-बड़े पत्थर अब भी ऊभरे हैं। इस कारण लोग सरकार से इस सड़क को पक्की बनाने की मांग कर रहे हैं। मांग पूरी नहीं होने पर ग्रामीण अब भी पहाड़ को काटने में लगे हुए हैं। पहाड़ काट रास्ता बन जाने से ग्रामीणों को अब 10 किमी की दूरी तय कर एक-दूसरे के राज्य में जाना नहीं पड़ता है। मात्र दो किमी की दूरी तय कर ग्रामीण एक दूसरे के राज्य आना-जाना कर रहे हैं।
100 से अधिक लोगों ने किया श्रमदान
दशरथ मांडी ने बताया कि 2016 से उन्होंने ग्रामीणों के साथ पहाड़ को काट सड़क बनवाना शुरु किया। काम अब भी जारी है। खेती का काम निपटाने के बाद दोनों राज्यों के ग्रामीण पहाड़ काटने में जुट जाते हैं। 100 से अधिक ग्रामीणों ने श्रमदान कर सड़क बनाई है। उन्होंने कहा कि बिहार के दशरथ मांझी से प्रेरणा लेकर उन्होंने भी पहाड़ काट सड़क बनाने की सोची। ग्रामीणों के साथ बैठक कर इसके बारे में चर्चा की तो ग्रामीण पहाड़ काटने के लिए राजी हो गए। फिर सभी ने मिलकर पहाड़ काट सड़क बना दिया। इस काम के लिए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उन्हें सम्मानित भी कर चुके हैं।
दोनो राज्यों के बॉर्डर पर है रानी पहाड़
रानी पहाड़ झारखंड और पश्चिम बंगाल के बॉर्डर है। इस कारण दोनों राज्यों के ग्रामीण ने पहाड़ को काट सड़क बनाने में अपना योगदान दिया। ताकि किसी काम से दोनों राज्यों के लोग एक-दूसरे के राज्य आना जाना कर सके। पहले 12 किलो मीटर घुम कर लोग आना-जाना करते थे। लेकिन अब पहाड़ पर सड़क बन जाने से 10 किलो मीटर की दुरी कम हो गई। लोग एक दूसरे के राज्य में हाट हजार, जरुरी सामन खरीदने के लिए रोजाना आना-जान करते हैं।