लाल बिल्डिंग अब इतिहास, 50 साल बाद हाईकोर्ट का पता बदला

Update: 2023-06-12 04:44 GMT

राँची न्यूज़: झारखंड हाईकोर्ट का लाल भवन इतिहास बन गया. इस लाल बिल्डिंग का अगला पता डोरंडा से हटकर धुर्वा हो जाएगा. पिछले 50 वर्षों से इंसाफ देने वाले इस लाल भवन की पहचान लोगों के दिलों में है. वर्ष 1972 में इसी बिल्डिंग में पटना हाईकोर्ट के रांची सर्किट बेंच के तौर पर कामकाज शुरू हुआ था. इस बिल्डिंग की पहचान 1976 में पटना हाईकोर्ट की रांची बेंच बनी. अलग राज्य बनने के बाद वर्ष 2000 में नई पहचान झारखंड हाईकोर्ट के तौर बनी.

वर्ष 2000 से अब तक इस लाल बिल्डिंग ने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए गए. कई फैसले तो हमेशा के लिए नजीर बनकर रह गए. फैसला चाहे राज्य में सरकारी नियुक्तियों का रहा हो या कोरोना काल में स्वास्थ्य सेवा को लेकर, हाईकोर्ट ने बढ़-चढ़ कर एक न्याय के मंदि के रूप में अपनी भूमिका निभाई. कोरोना काल में राज्य के सरकारी अस्पतालों और रिम्स के स्वास्थ्य सिस्टम को इसी लाल बिल्डिंग ने अपने फैसलों से जवाबदेह बना रखा था.

डोरंडा को पहचान दिलायी एक दौर था, जब न्याय के इस भवन के पास से गुजरते वक्त गाड़ियों के हॉर्न खामोश हो जाया करते थे. मुख्य सड़क के दोनों ओर पार्किंग में व्यवस्थित तरीके से गाड़ियां लगी रहती थीं. इसी भवन के एक कोने पर लोगों की पसंदीदा लिट्टी की दुकान पर दिनभर भीड़ लगी रहती थी. इंसाफ के इस मंदिर में आने वाले लोग बिल्डिंग के पीछे स्थित मार्केट में जलपान के अलावा जरूरी खरीदारी भी किया करते थे. पास में ही नेपाल हाउस यानी सचिवालय भवन होने की वजह से दूसरे जिलों से आने वाले लोग अपने दूसरे कार्य भी निपटा लिया करते थे.

कई अहम फैसलों का गवाह है लाल भवन यह लाल भवन कई अहम फैसलों का गवाह भी है. शहर के लोगों को पानी-बिजली, सड़क, नाली जैसी सुविधा भी इस भवन ने दिलायी है, तो कई महत्वपूर्ण मामलों में यहां संविधान पीठ भी बैठी है. जनता के काम में लापरवाही बरतने वाले अफसरों को कोर्ट की फटकार लगते हुए भी इस भवन ने देखा है, तो आम लोगों के मुद्दे उठाने वाली याचिकाओं की सराहना भी इस भवन से हुई है. महत्वपूर्ण फैसलों का यह भवन गवाह बना है. इसमें सरकार की स्थानीय नीति, नियोजन नीति, जेपीएससी की परीक्षाओं में गड़बड़ी, ट्रैफिक सुधार, पानी, बिजली, जलाशयों से प्रदूषण हटाने से लेकर कई अन्य फैसले शामिल हैं. शासन को उसकी जिम्मेदारियों का एहसास कराया.

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