झारखंड: आपने एक-दो लोगों के नेत्रदान करने की बात सुनी होगी। लेकिन यहां एक परिवार ऐसा है जिसके सभी 53 सदस्यों ने नेत्रदान के लिए शपथ पत्र भर रखा है। इनमें से पांच सदस्यों का नेत्रदान निधन के बाद हो भी चुका है। यह परिवार कतरासगढ़ राजगढ़िया गली निवासी अंकित राजगढ़िया का है। समाजसेवी अंकित न सिर्फ खुद और अपने परिवार का नेत्रदान करवा रहे हैं, बल्कि औरों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं।
इस परिवार ने पहला नेत्रदान अंकित के ताऊ स्व. देवी प्रसाद राजगढ़िया का 23 मार्च 2011 को रांची में किया। इसके बाद 21 जून 2024 को इनके पिता स्व. प्रकाश चंद्र राजगढ़िया की आंखों का कॉर्निया आसनसोल की टीम कतरास आकर ले गई। 30 अप्रैल 2018 को इनकी बड़ी मां (चाची) स्व. विमला राजगढ़या का, 10 जुलाई 2019 को इनके मामा सुरेश अग्रवाल का और 11 नवंबर 2022 को इनकी नानी स्व. कमला अग्रवाल का नेत्रदान हुआ। इन तीनों का नेत्रदान धनबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल एसएनएमएमसीएच के आई बैंक का कराया गया।
अंकित ने बताया कि उन्होंने अपनी मां सरिता राजगढ़िया और भाई संकेत राजगढ़िया के साथ खुद शरीर दान का संकल्प ले रखा है। मरणोपरांत तीनों का शरीर जरूरतमंदों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए तीनों से शपथ पत्र भरा है।
अंकित ने रक्तदान से समाजसेवा की शुरुआत की थी। इन्होंने 10 थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को गोद ले रखा था। ऐसे बच्चों को नियमित रूप से ब्लड की जरूरत पड़ती है। इन बच्चों के लिए अंकित ब्लड की व्यवस्था करते थे और खुद भी उनके लिए रक्तदान करते थे। 35 साल के अंकित अब तक स्वयं 55 बार रक्तदान कर लोगों की जान बचा चुके हैं। रक्तदान से इनकी जनसेवा का कार्य शुरू हुआ जो लगातार बढ़ता चला गया।
अंकित कहते हैं कि जीते जी किसी के काम आना बड़े गर्व की बात है। मरने के बाद भी किसी जरूरतमंद की मदद करना इससे भी बड़ी बात है। शरीर का अलग-अगल अंग किसी जरूरमंद के शरीर में काम करता रहेगा। आंखें दुनिया देखेंगी। दिल किसी के शरीर में धड़केगा। एक इंसान के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। इसी प्रेरणा के साथ पहले खुद अंगदान का निर्णय लिया और उसके बाद घर के सदस्यों को इसके लिए प्रेरित किया। अब मेरे लिए यह एक मुहिम बन चुका है। अंग दान कर मरने के बाद भी जिंदा रहने का यह एक बढ़िया जरिया है।