खनन पट्टा मामला, CM हेमंत सोरेन को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई टली
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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) पर CM रहते हुए खनन पट्टाखनन पट्टा लेने के आरोप में दायर जनहित याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में Stand over of division बेंच के कारण सुनवाई नहीं हो सकी. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत नहीं बैठने के कारण सुनवाई नहीं हो सकी. पूर्व में हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान अदालत में खनन पट्टा अपने नाम लेने के मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री और खनन विभाग के भी मंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पद पर रहते हुए, साथ ही साथ खनन मंत्री होते हुए खनन पट्टा अपने नाम करने को लेकर याचिकाकर्ता शिव शंकर शर्मा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. इस याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में सुनवाई हुई थी. अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मुख्यमंत्री को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने को कहा था. अदालत ने इस मामले की विस्तृत बिंदुवार अपडेट जानकारी कोर्ट में पेश करने को कहा था.
सीएम हेमंत सोरेन के नाम पत्थर खदान का पट्टा एलॉट होने का मामला सामने आया था. इस मामले में हाई कोर्ट में PIL दाखिल की गई थी. कोर्ट ने महाधिवक्ता से भी जवाब तलब करने का आदेश दिया है. झारखंड हाई कोर्ट में सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ 11 फरवरी को जनहित याचिका दायर की गई थी. शिव शंकर शर्मा की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने पीआइएल दाखिल की थी. इस जनहित याचिका में कहा गया था कि हेमंत सोरेन खनन मंत्री, मुख्यमंत्री और वन पर्यावरण विभाग के विभागीय मंत्री भी हैं. उन्होंने स्वयं पर्यावरण क्लीयरेंस के लिए आवेदन देकर खनन पट्टा हासिल किया है.
PIL में कहा गया कि ऐसा करना पद का दुरुपयोग है और जन प्रतिनिधि अधिनियम का उल्लंघन है. इसलिए इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराई जाए. हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने की मांग भी कोर्ट से की गई थी. हाई कोर्ट से मांग की गई थी कि अदालत राज्यपाल को यह निर्देश दे कि वह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ प्राथमिकी के लिए अभियोजन स्वीकृति दें. इस मामले में हेमंत सोरेन ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है. इसी मामले में उन्हें ECI को भी जवाब देना है. उन्हें 10 मई तक का समय दिया गया है. इसमें पूछा गया है कि आयोग क्यों न उन पर कार्रवाई करे और क्यों न सदस्यता रद्द कर दे.
हेमंत सोरेन ने जवाब में कहा है कि उन पर लगाए गए आरोप गलत हैं. आफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे में माइंस आवंटन नहीं आता है और न ही उन्होंने पीपल represntative एक्ट 1951 का 9A का उल्लंघन किया है. PIL पर उन्होंने कहा कि वो मेनटेन लेबल नहीं है. वहीं वकील का कहना है कि उनका स्टैंड और मामला स्ट्रॉन्ग है और उम्मीद है कि न्यायालय इसमें उनकी दलीलों को जरूर कंसीडर करेगा और कन्विंस होगा.