स्थानीय लोगों में खुशी, पीएम ने मन की बात कार्यक्रम में गोमो स्टेशन का जिक्र
धनबाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में ऐतेहासिक स्टेशन नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो जंक्शन का जिक्र किया है. इस बात से स्थानीय और रेल कर्मी बेहद खुश है. वहीं स्थानीय स्टेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भव्य प्रतिमा बनाने की भी मांग कर रहे हैं. धनबाद रेल मंडल अंतर्गत नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो जंक्शन है. यह स्टेशन धनबाद रेल मंडल के महत्वपूर्ण स्टेशन में से एक है.
रेल प्रबंधक ने क्या कहा: स्थानीय सेंकी गुप्ता ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो स्टेशन ऐतेहासिक है. प्रधानमंत्री ने मन की बात में इस स्टेशन का नाम लिए यह हमलोगों के लिये गर्व की बात है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस यहां अंतिम बार देखे गये थे. यहीं से वे कालका मेल से रवाना हुए थे लेकिन, आज तक स्टेशन का विकास नहीं हो पाया है. यहां नेताजी की एक भव्य प्रतिमा का निर्माण होना चाहिए. स्टेशन प्रबंधक नसीम परवीन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में स्टेशन का जिक्र किया यह बहुत खुशी की बात है. रेल प्रशासन और रेल विभाग की तरफ से धन्यवाद करती हूं.
गोमो स्टेशन से जुड़ा है नेताजी का अतीत: महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अतीत गोमो स्टेशन से जुड़ा है. अंग्रेजी सिपाहियों ने 2 जुलाई 1940 को नेताजी को हॉलवेल मूवमेंट के दौरान गिरफ्तार कर प्रेसिडेंसी जेल भेज दिया था. वह अपनी गिरफ्तारी से नाराज होकर जेल में ही अनशन पर बैठ गए थे. इससे उनका स्वास्थ्य लगातार खराब होता जा रहा था. तब अंग्रेजों ने उन्हें एक शर्त पर रिहा किया था कि तबीयत ठीक होने पर उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया जाएगा. हालांकि इससे भी अंग्रेजों का मन नहीं भरा तो उन्होंने एल्गिन रोड स्थित नेताजी को हाउस अरेस्ट कर लिया था. मामले की सुनवाई 27 जनवरी 1941 को होना तय था. नेताजी को इस मामले की भनक लग गयी थी कि इस मामले में उन्हें सजा होने वाली है.
गोमो स्टेशन में देखे गए थे आखिरी बार: नेताजी अंग्रेजी सिपाहियों की आंखों में धूल झोंक कर बंगाल की सीमा से भागने में सफल रहे. उनके कोलकाता से भागने की खबर फैलने के बाद अंग्रेजी हुकूमत के बीच खलबली मच गयी थी. वह अपने भतीजे और अपने परिवार के अन्य लोगों के साथ काले रंग की बेबी ऑस्ट्रीकन कार से गोमो पहुंचे थे. इसके बाद 17 जनवरी की रात गोमो स्टेशन से गंतव्य के लिए रवाना हुए थे. यह यात्रा उनकी अंतिम यात्रा मानी जाती है क्योंकि इस यात्रा के बाद से कभी नेताजी अंग्रेजो के हाथ नहीं आए उनके जिंदगी का शेष भाग कब, कहां और कैसे गुजरा इस बात को लेकर तरह-तरह की चर्चा आज तक बनी हुई है.