विधेयकों पर विवाद कम होता अगर झारखंड में विधि आयोग 10 साल से निष्क्रिय न होता

Update: 2023-08-09 09:11 GMT

राँची: झारखंड सरकार ने 14 नवंबर 2002 को राज्य में एक विधि आयोग स्थापित करने का निर्णय लिया था। न्यायमूर्ति सतेश्वर राय को आयोग के पहले अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद 2013 तक विधि आयोग राज्य में अस्तित्व में रहा। इसके अंतिम अध्यक्ष राज किशोर महतो ने विधानसभा चुनाव लड़ने के उद्देश्य से पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से झारखंड में विधि आयोग निष्क्रिय है.

आयोग के कार्य में बने रहने से सरकार को न केवल अधिनियमों के गठन, संशोधन, निरस्तीकरण समेत कई अन्य कार्यों में सहयोग मिलता, बल्कि महत्वपूर्ण विधेयकों पर राजभवन से टकराव भी काफी हद तक रुक जाता। पहले अध्यक्ष न्यायमूर्ति सतेश्वर राय वर्ष 2004 तक इस पद पर रहे। उसके बाद 2004 में न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा को आयोग का दूसरा अध्यक्ष बनाया गया। वे 2010 तक इस पद पर रहे. 2010 में अधिवक्ता कोटे से राजकिशोर महतो को अध्यक्ष बनाया गया. 2013 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया।

आयोग के सुझाव पर बने बड़े कानून

इस समय देश में सबसे चर्चित विषय समान नागरिक संहिता बनाने का सुझाव भी विधि आयोग द्वारा दिया गया है। विधि आयोग की सलाह पर ही विवाह की आयु सीमा तय की गई है। यूपी में गौ सेवा से जुड़ा कानून भी वहां के विधि आयोग के सुझाव पर ही बनाया गया है.

सरकार ने इसे निष्क्रिय क्यों कर दिया

2013 में विधि आयोग के आखिरी अध्यक्ष रहे राजकिशोर महतो ने सरकार से राज्य के कुड़मी-कुरमी समुदाय को एसटी का दर्जा देने की सिफारिश की थी. जब यह फाइल मुख्यमंत्री के पास गयी, उसी समय उस अनुशंसा से संबंधित फाइल अटक गयी और महतो को हटाने के बाद राज्य सरकार की ओर से किसी नये अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की गयी. हालाँकि इसके तीन अध्यक्ष जरूर बने लेकिन सदस्यों की नियुक्ति कभी नहीं हुई। जबकि दो सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है.

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