झारखंड में हूल क्रांति दिवस का उत्सव, वीर सपूत सिद्धो-कान्हू को किया गया नमन

Update: 2023-06-30 13:16 GMT
झारखंड के लिए आज का दिन बेहद खास है. आज के ही दिन संथाल के धनुर्धारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहले जंग का आगाज किया था. जिसे संथाल विद्रोह और संथाल हूल के नाम से याद किया जाता है. इतिहास के पन्नों में ऐसे सिपाही विद्रोह को आजादी की पहली लड़ाई माना जाता है. जल, जंगल, जमीन की रक्षा के साथ अंग्रेजी हुकूमत और महाजनों के शोषण और अत्याचार से तंग आकर वीर नायक सिद्धो, कान्हू, चांद, भैरव के नेतृत्व में विद्रोह का एलान किया था. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले झारखंड के इन नायकों की शौर्यगाथा और बलिदान को याद किया जाता है. इसलिए झारखंड के तमाम हिस्सों में हूल दिवस का विशेष महत्व है. रांची, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद, सरायकेला में हूल दिवस पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. राज्यपाल से लेकर सीएम सोरेन और विपक्ष से लेकर तमाम पूर्व सीएम तक ने अपने अपने इलाकों में हूल दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होकर वीर नायकों को नमन किया.
झारखंड के तमाम इलाकों में हूल दिवस पर कार्यक्रम
राजधानी रांची में इस दिवस को विभिन्न स्थानों पर मनाया गया है. रांची के मोराबादी स्थित सिद्धू कानू पार्क में उनकी प्रतिमा पर विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं के द्वारा माल्यार्पण और श्रद्धा सुमन अर्पित किए. बोकारो में चास के आईटीआई मोड स्थित सिद्धू कानू की प्रतिमा पर सभी लोगों ने माल्यार्पण कर उन्हें याद किया और श्रद्धांजलि अर्पित की. झारखंड मुक्ति मोर्चा के द्वारा इस हूल दिवस को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया. नेताओं ने कहा कि राज्य में हेमंत सोरेन की सरकार सभी शहीदों के सपनों को पूरा करने का काम करेगी क्योंकि इन शहीदों ने जल जंगल जमीन की रक्षा के लिए बलिदान दिया था और इसे हम लोग याद करने का काम कर रहे हैं.
क्या है हूल क्रांति?
हूल का संथाली अर्थ है विद्रोह
30 जून 1855 को विद्रोह की हुई शुरुआत
आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ खोला मोर्चा
सिद्धू-कान्हू की अगुवाई में आंदोलन की हुई शुरुआत
400 गांवों के 50 हजार लोगों ने किया जंग का ऐलान
भोलनाडीह गांव से 'हमारी माटी छोड़ो' आंदोलन का ऐलान
आदिवासियों ने परंपरागत शस्त्रों की मदद से किया विद्रोह
विद्रोह के बाद बुरी तरह से घबरा गई थी अंग्रेजी सेना
आदिवासियों ने परंपरागत शस्त्रों से अंग्रेजों को कर दिया था पस्त
क्रांति में 20 हजार आदिवासी हुए थे शहीद
अंग्रेजों ने सिद्धो और कान्हू दोनों भाइयों को पकड़ लिया
26 जुलाई 1855 को सिद्धो-कान्हू को दे दी थी फांसी
इन्हीं शहीदों की याद में मनाया जाता है हूल क्रांति दिवस
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