Babulal ने सीएम पर साधा निशाना, कहा-गलतफहमी पालकर आखिर कितने दिन बंद रखेंगे आंखें

Update: 2024-07-25 08:20 GMT
Ranchi रांची: भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने एक बार फिर से तार्किक अंदाज में सीएम हेमंत सोरेन पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि गलतफहमी पालकर कितने दिन आंखें बंद रखेंगे. उठिए, जागिये महाराज, देखिये आपके पीछे अब कोई नहीं बचा है. और हां, थोड़ी सी भी मर्यादा और इंसानियत बची हो तो नामजद सहायक पुलिसकर्मियों का नाम एफआईआर से वापस लें. चाहे आप अपनी हड्डियों का बचा पूरा दम भी क्यों न लगा लें…अधिकारों के मिलने तक, मांगों के पूरा होने तक यह संघर्ष अनवरत चलता रहेगा,
यह बिगुल हरदम बजता रहेगा.
बाबूलाल ने एक्स पर आगे लिखा कि हेमंत सोरेन जी, आपने तो जमानत पर जेल से छूटने के बाद चंपाई सोरेन जी द्वारा घोषित 40,000 नौकरियों में 25% कटौती कर के 30,000 नौकरियां देने की बात कही थी, लेकिन अब तो प्रतिदिन दनादन परीक्षाएं स्थगित की जा रही हैं. इस आपाधापी की वजह क्या है? क्या आयोग ने सरकार के दबाव में अधूरी तैयारी के साथ परीक्षा की तिथि घोषित कर दी थी? क्या आपको नौकरी बेचने का मनचाहा ”रेट” नहीं मिल रहा ?
युवाओं को नौकरी देने की नियत नहीं
वजह चाहे जो भी हो, एक बात तो स्पष्ट है कि आप में झारखंड के युवाओं को नौकरी देने की नियत नहीं है..आपकी मंशा सरकारी नौकरियों के पदों को बाहरी हाथों में बेचकर अवैध रूप से उगाही करने की है. झारखंड के युवाओं को आप जैसा ”घोषणावीर” सीएम नहीं चाहिए. कुछ महीने और प्रतीक्षा करिए. युवा आपकी इस धूर्तबाजी को हमेशा के लिए बंद कर राजनीतिक रूप से बेरोजगार कर देंगे.
ये कैसी सरकार है….
बाबूलाल ने आगे लिखा कि जहां पहले अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है, फिर लाठी खानी पड़ती है और अंत में मुख्यमंत्री जी के आदेश पर झूठी एफआईआर भी लिखी जाती है. वैसे तो मुख्यमंत्री जी के लिए, उनकी आलोचना करना पूरे आदिवासी समाज की आलोचना करने के बराबर है, परंतु जब बात खुद सत्ता में बैठकर आदेश देने की आती है, लोगों पर एफआईआर कराने की आती है तो महोदय को आदिवासी समाज नहीं दिखता है. नामित नामों को देखें तो 18 में से लगभग 11 से 12 नाम आदिवासी भाई -बहनों के हैं और अभी 1500 अज्ञात लोगों में से न जाने और कितने आदिवासी भाई- बहनों के नाम सामने आने बाकी हैं. आदिवासी समाज का आवरण ओढ़कर झूठ फरेब की राजनीति करके मुख्यमंत्री जी सत्ता पर तो बैठ गये हैं, लेकिन आज भी उनकी आंखों में स्वार्थरूपी पट्टी बंधी है, वो आज भी आदिवासी समाज के लोगों को सिर्फ अपना वोटबैंक समझते हैं. उन्हें यह भ्रम है कि आदिवासी समाज पर वो चाहे कितने भी जुल्म करें, कितना भी अत्याचार करें, आदिवासी समाज उनके साथ खड़ा है.
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