धनबाद: प्लास्टर छाेड़तीं कमजाेर दीवारें और जंग लगी छड़ाें पर लटकी छत। फर्श से लेकर पूरे भवन में दरारें। ऊपर से पास में काेयला खदान। खनन के लिए ब्लास्टिंग हाेने पर पूरा भवन कांप उठता है। खंडहर में तब्दील हाेते जा रहे झरिया के केसी बालिका उच्च विद्यालय का काेई काेना ऐसा नहीं, जिसे सुरक्षित कहा जा सके। वहां चंद घंटे गुजारना भी खतरे से खाली नहीं, लेकिन स्कूल में नामांकित 798 बेटियां यहां इसी डरावने हालात में पढ़ाई करने काे मजबूर हैं।
इन दिनाें बारिश हाेने से बच्चियाें के लिए हालात और मुश्किल भरे हाे गए हैं। छत से पानी चूता है, किताब-काॅपी और कपड़े भीग जाते हैं। स्कूल का बरामदा तालाब बन जाता है। सीढ़ियां ऐसी कि एक साथ अधिक छात्राओं के उतरने-चढ़ने पर राेक है। क्लासरूम, लाइब्रेरी समेत भवन के किसी काेने में बेटियाें का उछलना-कूदना प्रतिबंधित है।
स्कूल प्रबंधन भवन के जर्जर हाे जाने की सूचना देते-देते थक चुका है, लेकिन शिक्षा विभाग के अफसराें काे काेई फर्क नहीं पड़ रहा। स्कूल के भवन का निर्माण साल 1931-32 में किया गया था। 9 दशक गुजर गए, शिक्षा विभाग ने एक बार भी उसकी मरम्मत कराने या स्कूल के लिए नया भवन बनवाने की जरूरत नहीं समझी। सवाल उठता है कि क्या अफसर किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं।